Lakshita   (Laksh"preet")
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Joined 9 September 2021


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Joined 9 September 2021
1 JUN AT 9:12

वो जो बहती नहीं , मन में बसती है

कहते है लोग मुझे
तू हर बार वहीँ क्यूँ जाना चाहती है
ऐसा क्या है वहाँ
जो तू हर ख्वाब उसी के सजाती है
यार,
कह दूँ कि बोर हो जाती हूँ मैं वहाँ
तो यह कथन सच्चा नहीं लगता
कौन कहेगा कि
माँ की गोद में सर रखना मुझे अब अच्छा नहीं लगता
" कितनी देर हो गयी , अब आजा "
वो मुझे आवाज लगाती है
जिंदगी की शाम होते ही
कभी गंगाजी तो कभी मनसा माँ मुझे बुलाती है
वो मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आती है
सर्द गर्म हवा में वो मेरा आराम बन जाती है
एक दुनिया में मैं रहती हूँ
और एक दुनिया वो मुझ में बनाती है
कुछ उसे माँ तो कुछ मात्र बहता पानी कह्ते है
मिट जाए जो पल भर में उसे कहानी कह्ते है
उसकी कल कल की आवाज लोरी ,
उसकी लहर माँ का साया लगती है
तभी उस संग बिताए हर पल को जिंदगानी कह्ते है

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11 MAY AT 11:53

प्यार जताना आंदा नहीं ओनू
मगर इक दी जगह दो रोटी खिलांदी है
डाँट कर मेनू ओ ,
आपे इ रोन लग जांदी है
मेरे नाल पूरी दुनिया जेहा लङ ले
मगर मेरे लइ सारे जग तो लङ जांदी है

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10 MAY AT 8:55

है कोई खड़ा वहाँ ,
हर कोई यह सोच कर सूकून से सो जाता है
यार,वो तो अपनी शहीदी का भी जश्न बनाता है
पहलगाम की कहानी में नाम उसका सबसे ऊपर आता है
हर स्थिति में , वो दुश्मनों को उन्हीं हैसियत दिखाता है
कभी कुछ हो जाए ,
तो बड़ी शान से तिरंगा ओढ़ कर आता है
वो फौजी है
जो अपनी जान को छोड़ सबकी जान बचाता है

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10 MAY AT 8:53

वो याद करता है उन्हें हर पल
मगर रोज अंधेरे से जूझने चला जाता है
आँखों दहाड़ती है उसकी
मगर कैसे वो आखिरी संदेसा लिख पाता है
धर्म जात से परे
वो माँ का सपूत कहलाता है
वो फौजी है ,
जो अपनी जान को छोड़ सबकी जान बचाता है

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10 MAY AT 8:51

घर की चांदनी खिलौना लिए ढूँढती है उसे
सुने आँगन की रंगोली उसके साथ मंदिर जाना चाहती है
वो कलाई से लिपटा प्रेम बात करने को तङपता है
मगर मिट्टी की सोंधी खुशबु उसे हर दम पुकारती है
वो फिर भी बस एक तस्वीर अपने पास रखता है
अपने परिवार से दूर होकर
वो हम सबका परिवार बन जाता है
वो फौजी है ,
जो अपनी जान को छोड़ सबकी जान बचाता है

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30 APR AT 10:42

बिखर गयी मैं इस कदर ,
अब जुड़ने की हिम्मत नहीं मिलती
ढोकरों के बाद भी किस्मत में कुछ अच्छा लिखने की
क्या ए~खुदा तुझे फुर्सत नहीं मिलती

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26 APR AT 20:28

ले गया साँसे कई , कई आवाजें दबाई है
धर्म पूछकर आज बेरहमी से गोलियां चलायी है
मेहंदी भी फीकी न हुई
सिंदूर मिटाकर उसे सफ़ेदी थमाई है
और उम्र थी जिसकी कंधों पर बैठने की
उस बेटे ने अपने कंधे पर पिता की अर्थी उठाई है

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19 APR AT 16:51

कैसा भी हो मौसम यहाँ
मैं रो कर, हँस कर गुजार लेती हूँ
बेबस हो जाती हूँ हाँ कभी-कभी
तो चीख कर अपनी शक्ति को पुकार लेती हूँ
और जो सोचते हैं अकेली मैं क्या कर लूँगी
मैं तो अपनी नजर भी खुद उतार लेती हूं

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15 APR AT 17:22

तेरी खामोशी, तेरा बेरंग चेहरा
हर एहसास का बख़ूबी ख्याल रखा है
तू क्या है, तू क्यूँ है, हुआ क्या तेरे साथ
हर गली हर चौराहे पर यह सवाल रखा है

रोई थी तू जिस दिन अपने ख्वाब बहाकर
आज भी वो आँसू पोछने वाला रुमाल रखा है
तू क्या है, तू क्यूँ है, हुआ क्या तेरे साथ
हर गली हर चौराहे पर यह सवाल रखा है

हुआ जो हुआ , फूल खिलते है , मुर्झाते भी
तेरे लिए भी एक आसमान कमाल रखा है
तू क्या है, तू क्यूँ है, हुआ क्या तेरे साथ
आज भी हर गली हर चौराहे पर यही सवाल रखा है

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14 APR AT 7:56

कभी वक़्त तो कभी वस्त्र को दोषी बताते हो
ईश्वर की अदालत में तुम्हारी रूह गवाही न देगी

जिन्दा नारी की मांग तुम सुनते नहीं
मार जाने के बाद वो सफाई न देगी

अगर बच गयी वो तो वो शस्त्र उठाएगी
सुरक्षा की गुहार तुम्हें सुनाई न देगी

और इस बार तुम याद रखना
सबला में अबला तुम्हें दिखाई न देगी

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