Lakshit Sharma  
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Joined 24 May 2018


Joined 24 May 2018
21 AUG 2020 AT 8:49

आईने के सामने जो टूट के ले ली थी आपने अँगड़ाई
मेरे अक्स में भी दिखने लगी है, हजूर आप ही की परछाई !

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13 AUG 2020 AT 12:56

तुम्हारी किताब का चौबीसवां पन्ना, पलटा ना गया रात भर
कभी इसी पन्ने पर छिपा के, एक गुलाब भेजा था तुमने !

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12 AUG 2020 AT 10:04

तुम्हारी आंखों में चाँद सा नूर और मेरी में चाँद के धब्बे
हमारी नज़रें मिलने पे लाज़मी ठहरा, मुकम्मल होना चाँद का !

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11 AUG 2020 AT 21:03

मुझ से ना पुछ ऐ साकी जिन्दगी का कोई हिसाब
मैं तो खत्म होने लगा हूँ, खत्म होते होते ये शराब !

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10 AUG 2020 AT 20:47

बाद हादसे इश्क़ के मैं जरा सा ही तो बचा हूँ
मुझे उतना तो होने दे खुदा, जितना लिखा हुआ हूँ !

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9 AUG 2020 AT 12:34

मैंने लिखी नहीं कभी भी, कोई नज़्म याद में तुम्हारे
लिख लेने के बाद हर बार, मगर तुम याद बड़े आये !

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8 AUG 2020 AT 8:42

जो बात फ़कत आपके होंठों पे थी
दिल में भी होती, तो बात होती !

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7 AUG 2020 AT 9:42

जिस हथेली पे लिये फिरती थी वो जाँ मेरी शहर भर में
अपने निकाह में भी उस हथेली पे उसने मेहंदी ना लगने दी !

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6 AUG 2020 AT 9:07

दीवारें घेरेंगी हर सू तो सर पटकने को जी चाहेगा
मुझे कोई घर दिलवा दो बिना दर-ओ-दीवार का !

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5 AUG 2020 AT 8:40

मेरे अंदर से जो निकलता है इक आदमी घर से दफ्तर को
लाख मिन्नतों के बाद भी मुझे साथ कभी नहीं ले जाता !

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