चाँद की तरह हो
नूर भी दूर भी
आँखों के सामने भी और नहीं भी
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एक दूसरे से कितने ऐंठे हैं,
फ़ोन पर एक साथ तन्हा बैठे हैं।
आगे पीछे चलते हैं,
रस्ते अपने आप संभलते हैं।-
अकेले बैठा-बैठा कभी मुस्कुराता हूँ
तो कभी तुझ से नाराज़ हो जाता हूँ
फिर थोड़ी देर बाद हवा को गले लगा कर
खुद ही मान जाता हूँ
तेरे कानो में प्यार की बातें धीमे से बोल कर
तुझे शर्माता हुआ सा पाता हूँ
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तेरे माथे की सलवाटों में अपने आप को ढूंढ़ता हूँ
तेरी आँखों की चमक की तुलना चाँद से करके
चाँद को एक बार फिर से जलाता हूँ।
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मिसाल क्या दे उनकी जो खुद चाँद है,
रहमत है खुदा की,
उनकी मुस्कान हमें अभी तक याद है।
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ये जो ठराव आजाता है ना रिश्तो में
हिसाब चुकाना पढता है उसे किश्तों में
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इल्म ही नहीं होता कब वक़्त बर्बाद कर जाता हैं
हसरते होती ही नहीं और आईना जवाब दे जाता हैं|
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सोलह श्रृंगार एक तरफ,
उसके काजल की धार एक तरफ,
पहले घायल होते है
फिर मर जाते हैं
किस्मत की मार एक तरफ
तेरे आंखों का वार एक तरफ
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मेहफिल ने कहा दुनिया को इक
अलफाज मे लिख कर दिखिओ।
सब किताबेँ ढुढते रह गए
मैंने तेरा नाम लिख दिया।
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किताबों के पन्नों को पलट रहे थे और गुज़रा हुआ वक़्त याद आ गया
करीब से बैठकर समदर की लहरों से सवाल कर रहे थे जिसमे ज़िंदगी का सैलाब आ गया।
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