lafz humare   (सुruchi)
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Joined 16 May 2020


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14 JUN 2021 AT 11:03

बाहें फैला सुबह की आभा
स्वागत करती जन जन का
ओस की बूंदे ताजा कर गई
कण कण में समा तर कर गई
मन हरित देख धरा सुशोभित
खिला फूल दिखता हर्षित
चंचल चाहत जागृत हो और
जीवन गति असीमित
जब लोहित की पुरवाई
छू कर जाती यह तन मन
शोभित अलौकिक प्रकृति को
मेरा शत शत नमन।

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12 MAY 2021 AT 10:20

गमों को चुराते दोस्त
हँसी के ठहाके दोस्त
जाने कितनी ही खुबियों संग
उमंग भर जाते दोस्त
बिना आस बिना प्यास
फर्ज़ निभा जाते दोस्त
तू मेरा मैं तेरा मन
दुनियां के बेसहारों के
सहारे बन जाते दोस्त
आंखें बंद सामने दोस्त
कैसा सम्बंध न जाने दोस्त।

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28 MAR 2021 AT 12:10

कुछ दर्द बह गए आंखों से
कुछ बाहरी हंसी से ढक गए
शिकवे करे किसी से क्या
जब खुद ही राह भटक गए।

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30 JAN 2021 AT 15:44

बेहिसाब ख्वाहिशें
छोटी सी जिंदगानी।
नन्हीं नन्हीं खुशियांँ
अनगिनत मनमानी।
ए वक्त तू ठहर
अभी अधूरी कहानी।

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22 JAN 2021 AT 15:58

एक दिन मन में भरी उमंग
जीवन में भरलूॅं सब रंग
बाँहों को फैला कर देखा
ज्यों ही आसमान की ओर
मुस्कुराहट फैली होठों पर
पाया हो जैसे मैंने
सारा जहां हो मेरे संग।

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10 JAN 2021 AT 10:40

तालाब बीच एक मृणाल
खिला खिला सा दिख रहा।
खूबसूरती के मंज़र को
चारों ओर बिखेर रहा।
पंखुड़ियों पर पानी की
रिमझिम बूंद को रख रहा।
आकर्षित वो अपनी ओर
हर एक को कर रहा।

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9 JAN 2021 AT 15:27

जिस काग़ज़ पर लिखना चाहा
अश्कों ने उसे भिगोया।
आंखों में छवि तुम्हारी थी
कुछ शब्द नहीं लिखे तो क्या
दर्पण गवाह है।

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23 DEC 2020 AT 16:18

चिरैया बैठी नीड में
बहुत उदासी छाई।
कैसे चहके बाहर आ
सांझ ढलन को आई।
उड़ उड़ जाए सूखे पत्ते
जोर चली पुरवाई।
दिन और रात की मिलन बेला में
गगन लालिमा छाई।

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9 DEC 2020 AT 16:20

चोट दिल पर लगती है तो
फिर ऑंखो का क्या कसूर है।
बह जाते हैं अश्रु तो फिर
वो आदत से मजबूर हैं।

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25 NOV 2020 AT 22:32

पता नहीं चला यह मन
कल्पना में भटककर
कब दूर का सफ़र तय कर गया
कुछ चाहतों को महसूस कर
रिश्तों को झोली में भरता चला गया
कुदरत की सोची समझी डोर में
मन अक्सर बंध सा जाता
अचानक कोई मन को पढ़ता हुआ
दिल के दर तक आ जाता।

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