मैंने लिखते-लिखते एक किताब लिख दी,
उसी शख्स पर जो मुझे मिला ही नहीं।-
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उसपर नज्मे क्या लिखूं गजले बन सकती है,
यही वजह है की तरक्की कदमें चूम सकती है।
अगर छोड़ कर चली नजरे बंद कर ली तो क्या हुआ,
दिल का मामला है,दिल-से-दिल गुफ़्तगू कर सकती है।
तुम्हें देखा फिर नहीं उठाया कभी नजर किसी पर,
सो तुम्हारी ये गलती मेरा दिल माफ़ नहीं कर सकती है।
तितलियों की आदत होती है उड़ जाना सो उड़ गयी,
ये दिल है सो बस कोई "रानी" ही घर कर सकती है।
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वो आँखे याद आती है औऱ बातें याद आती है,
अकेले जब-जब होता हूँ,तुम्हारी याद आती है।
कितने करीब हूँ,आज़ भी तुम्हारे तुम सोचो,
पायल बजती किसी और की है तुम्हारी याद आती है।
उम्र भर का साथ देने का वादा था तुम्हारा,
वो गलियां वो रास्ते वो चौराहे याद आती है।
तरह-तरह के बद्दुआ मिली सफर में मगर,
तुम्हारी एक दुआ बिछड़ने की बस याद आती है।-
क्या मैं जैसे तड़पता हूँ क्य़ा वो भी ऐसे तड़पता है,
जैसे मैं तिल-तिल मरता हूँ क्या वो भी पल-पल मरता है।
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मुस्किल मे कोई काम आए तो अच्छा है,
ग़र ज़ख्म पर मरहम लगाये तो अच्छा है।
यूँ तो बनते ही हमदर्द जवां औरतों के ये मर्द,
गरीबो के भी मसीहा बने तो अच्छा है।-
ना हुस्न की चाहत थी,ना जिस्म की लालच,
पागल सा लड़का था,तेरी नादानीयों पे मरता था।-
इन ग़मो ने तो मुझे नहीं मार पाया ख़ुदा,
अब कोई खुशी ही भेज तो "हादसा" हो जाये।-
आँखे आसमान के तरफ़ जब जाती तो तुम दिखती हो,
मैंने कभी चाँद को तुमसे खास नहीं समझा।-
ग़र जो तुझ पर परेशानीयाँ आने लगे,
तो समझ लेना मेरी "मौत" हो चुकी है।-
ढूंढो तो सुकूं तो खुद में ही मिलेगी,
दूसरों में तो बस उलझती है जिंदगी।-