तीक्ष्ण-तीक्ष्ण मसृण कटि, गजगामिनी चाल। पीयूषकेसरी वर्णित काया, ओष्ठ सिंदूरी लाल।। मधुपूरित वाणी शब्दों की, कुंतल कृष्ण विशाल। देख लोक ये चकित हुआ, ये सत्य या मायाजाल।।
मतिभ्रष्ट को स्वशस्त्र से जो सुमार्ग पर लाए, छाया उसकी जो पड़े सो सिद्धि को पाए। हित-अहित नीति न्याय को जड़ मति जे पहुंचाए, बहिबज्र भीतर से कोमल, ते शिक्षक कहलाए।