है सुलग़ती सी ये धूप, पर तेरी छाया काफ़ी है, जितना देखूं तुम्हे लगता है अभी भी कुछ बाक़ी है,
रुस्वा तुम हो जाती हो, पर मनाने का रस्ता मेरा अभी बाक़ी है,
छिप जाती हो जल्द ही, पर पता देने के लिए तुम्हारा साया ही काफी है,
सावन की नाराज़गी को पतझड़ से मनाना अभी बाक़ी है, है तुम्हारे रंग ही वो, देख लो चाहे जिस तरफ़, हर ज़रे पर ज़िक्र तुम्हारा बाकी है,
लुटा दूँ मैं ये जहान भी, पर मेरे इज़हार का अभी किस्सा बाकी है,
कहानी है वो दफ़न कहीं इस ख़िज़ाँ में, बस परत हटाकर देखना बाकी है,
ना जाने क्यूँ ये लगता है लौट के आओगे तुम कभी,
क्यूंकि प्यार का किस्सा अभी बाकी है,
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