कवि संतोष बड़कुर   (कवि संतोष बड़कुर)
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Poet शायर Writter
Joined 8 December 2018


Poet शायर Writter
Joined 8 December 2018

उम्र का तक़ाज़ा है,फिर भी
ज़िन्दगी की जंग जारी है।
झुर्रियों से कितना भी बच लो
आज हमारी,तो कल
तुम्हारी बारी है।।

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किताबों से बातें बड़े ही काम आती हैं,
किताबें जीवन के अनुभव बताती हैं।

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बहुत संभालकर तेरा
दिया गुलाब रखा है,
बड़ा ही खूबसूरत तेरे
लिए जवाब रखा है।
तुझे न देखूं तो कुछ
दिखाई नही देता,
मेरी आँखों में बस
तेरा ही ख़्वाब रखा है

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आईना जब भी उनकी खबर लेता है,
उनको देखकर वो भी सँवर लेता है।
क़ातिल नज़रो से जब देखते वो उसे,
उनकी अदा से वो भी निखर लेता है।

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इश्क़ वाले हार वहीं मानते हैं,
जब पापा बात नही मानते हैं।

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बहुत ही मेहनत का काम है शायद ये ज़माने में,
कि आग लगानी पड़ती है अपने ही खज़ाने में।
सुकून बस ये है एक दिन खुद की छत होगी सर पे,
इंसान खाना तक भूल जाता है अपना घर बनाने में।

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शामिल हो रहे हैं वो भी, अब इस प्रथा में,
अक्सर खुश होते हैं जो दूसरों की व्यथा में।
मुँह में राम,बगल में छूरी लेकर जो चलते हैं जो,
आजकल वो भी जाकर बैठे हैं,भागवत कथा में।

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मैदान तक ठीक है,मैदान के बाहर हेट कैसा,
जहाँ खींचा तानी,चिल्ला चोंट न हो,
वो 'क्रिकेट' कैसा।
Only boys will Understand this
🤜🏻🤛🏻🤭🤪😂
Poet Santosh Badkur
मिलो फिर इतवार को😂🤣🏏

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तेरी तन्हा रातों का
मैं ख्याल बन जाऊँ,
इक़रार होने वाला
दिल-ए-हाल बन जाऊँ।
रंगों के मौसम में,
इस क़दर करीब रहूँ तेरे,
कि मैं तेरे गालों पर लगा
'गुलाल' बन जाऊँ।

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उनके बिना जीने का ख्वाब पल नही सकता,
उनके बिना आदमी अकेला संभल नही सकता।
अहमियत उनकी इस क़दर है इस जहान में,
कि उनके बिना ये संसार कभी चल नही सकता।
Happy Women's Day👩

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