कवि प्रमोद नामदेव   (प्रमोद नामदेव"पथिक")
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Joined 17 February 2019


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Joined 17 February 2019

कागज़
हर क्षण हर पल को अपने में लपेटे हुए हूँ ।
कई सहस्त्र सालों को अपने में समेटे हुए हूँ ।
में इतिहास को भी बचाने वाला मात्र बचा एक गवाह हूँ ।
दूर बैठे प्रेमी को प्रेमिका से मिलाने वाला एक प्रवाह हूँ ।
में एक सैनिक के माँ बाप की आँखों का निश्चल अरमान हूँ ।
में प्रातः हर घर दस्तक देने वाला बुजुर्गों के समय का सम्मान हूँ ।
में साहित्यकारों के सपनों को हकीकत में बदलने वाला एक सारथी हूँ ।
में हर सही एवं ग़लत शब्द को स्वीकारने वाला एक प्रार्थी हूँ ।
लगता है कभी कभी मेरी श्रेस्ठता से की में भी एक दिग्गज हूँ ।
पर में तो ठहरा सीधा साधा एक छोटा सा कोरा कागज़ हूँ ।।

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बरसात की रिमझिम बूंदों सी तुम हो
और मैं घनघोर गरजता बादल प्रिये,
तुम शरद ऋतु वाली चंचल पुरवाई
मैं थर थर ठिठुरता अभिसार प्रिये ।।

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दुनिया सिर्फ़ अल्फाजों को समझती है,और हम जज़्बातों का दामन थामे बैठे है,
मौत मयस्सर है फ़िर भी अदब से अंजुमन में आशिक़ कि फ़िराक में लेटे है ।
आहिस्ता ही सही इक़रार ओर इन्कार का बेसब्री से हमें इन्तजार रहेगा ’पथिक’,
हिज़ा गर रूठ गई समझो,मिलने इस चश्म-ओ-चिराग़ से लाखों दीवाने जो बैठे है ।।

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ख़ालिस राज़ को यूंही मन में दफ़न कर के चल रहे हो,
पास ही में बैठे हो फ़िर भी खफ़ा खफ़ा से लग रहे हो।
नाचीज़ का ज़र्रा ज़र्रा सिर्फ़ ख़ूर्शीद के लिए महक रहा है,
ख़ास और ख़राब का हिसाब पथिक कभी नहीं रखता ।
जिंदगी की चौसर में तुम अब मेरी भी चाल चल रहे हो।।

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तलबगार है उस मोहब्बत के जहां स्नेह अपरम्पार हो 💕
❣️
जिजीविषा का भाव जगा दें ऐसा उसमें स्वभाव हो.....
💝

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चलिए जिंदगी के इक़ नए मुक़ाम की तलाश करते हैं ।
एक कप ...चाय... फिर नए सिरे से शुरुआत करते हैं ।।
बदलते इस ज़माने में यूँही दुनिया तो बदलती ही रहेगी ।
क़िस्से कहानी के इस दौर में भी हमारी बात होती रहेगी।।
प्रमोद नामदेव "पथिक"

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बे-अदबी के इस ख़ुश्क दौर में तबस्सुम एक मुस्कान दिला दीजिए ।
प्यार के पतीले में बनी अहसासों की बस एक कप चाय पिला दीजिए ।।
प्रमोद नामदेव "पथिक"

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घने कोहरे की इन ठंडी हवाओं में हम खो जाएं ।
एक हल्की मुस्कान संग दो कप चाय हो जाएं ।।
प्रमोद नामदेव "पथिक"

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इत्मीनान से आज जिंदगी को जीते है ।
चल आजा बैठकर थोड़ी चाय पीते है ।।

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प्यारे बच्चे
एक नादान परिंदा हूँ में,
पंख मेरे न निकले अब तक
जहाँ पांव न पड़ते मेरे,
उड़ना चाहता हूं गगन तक
मन में उमंग नया जोश भरा हैं,
डगर कठिन मन में मोह खरा है
दुनिया का न ज्ञान है मुझमें,
लेश मात्र संज्ञान न मुझमें
कहते हमको तुम कितने अच्छे,
अरे हम ही तो है वो प्यारे बच्चे
डर का नहीं मुझमे आभास,
दुनिया कहती बच्चों शाबाश

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