शायद इतनी ही थी जिंदगी शायद,
शायद अब और ज्यादा जी हम
नहीं पाएंगे,लगता है बुलावा आने को
है हमारा भी,हम भी अब उड़नछू हो
जाएंगे,शायद जाएंगे लेटकर स्ट्रेचर पर
और वापिस अर्थी पर हम आएंगे,अपने
कर्मों का फल यहीं भोगकर जाएंगे,शायद
हम भी अकाल मृत्यु को पाएंगे,जिसको
मिलना हो मिल लो,शायद फिर नहीं मिल
पाएंगे,किए कुछ अच्छे बुरे कर्म,उनका कर्ज
हम यहीं चुकाएंगे,बच गए तो फिर सेवा में जुट
जाएंगे,मर गए तो फिर जाने क्या होगा,
जाने कौनसी योनि को पांएगे,
मरकर भी मां बाप के प्यार का
कर्ज चुका नहीं पाएंगे
शायद इतनी ही थी जिंदगी,
शायद अब और हम ज्यादा
जी नहीं पाएंगे।
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