कभी डुबोता, कभी लगाता पार।
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कवि अजय अनोखा चित्रकार
(कवि अजय अनोखा चित्रकार)
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Writer, Artist, Teacher
Joined 22 June 2018
21 MAY AT 18:14
मुसाफ़िर दुनिया हो चली अब छल की जेल
हर पीठ के पीछे आज खेले हर कोई खेल।
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14 MAY AT 19:22
ज़िंदगी को मिल गया है आशिक़ी का फ़लसफ़ा,
मुसव्विर के मुसलसल अश्कों से गल गया है सफ़ा।
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5 MAY AT 9:00
सपनों की लहर में खेल रहे हैं
हम असल ज़िन्दगी में न जाने
क्या क्या झेल रहे हैं।-
4 MAY AT 21:07
If I were to be a star,
I would break every day and
fulfill the wishes of others.
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4 MAY AT 20:52
ए ज़िन्दगी तेरे लिए
हमने वक़्त को अपना
रक़ीब बना लिया।
दिनाँक: 4 मई 2025-
4 MAY AT 20:40
देखिए दुनिया को गौर से
कभी इस ओर से, कभी उस ओर से।
दिनाँक: 4 मई 2025-
4 MAY AT 20:27
गुमनामी में जीते हैं, हम अब भी
एक अधूरी कहानी में जीते हैं।
दिनाँक: 4 मई 2025
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4 MAY AT 20:20
सतरंगी सपने हैं, ज़िंदगी बेरंग है
आज हर अपना हमसे, न जाने
क्यों तंग है।
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