कवि अजय अनोखा चित्रकार   (कवि अजय अनोखा चित्रकार)
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Writer, Artist, Teacher
Joined 22 June 2018


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Joined 22 June 2018

तुम्हें तो दिल में रहना था,तुम
अब क्यों मुश्किल में रहते हो।
हमें छोड़कर तन्हा रास्तों पर
तुम खुद मंज़िल में रहते हो।

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हमारी आँखों को
ये नमी खाई जाती है।

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हक़ीक़त वो नहीं है जो हर बार दिखाई जाती है
झूठ के घने अंधेरे से हक़ीक़त भी छिपाई जाती है।

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कुछ ऐसे ही हालात थे
तब तुम हमारे साथ थे,
तब हम तुम्हारे साथ थे।

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कभी वो हमारे,
कभी उसके हम।

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, क्या
वो सच में हबीब होते हैं?

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जब टूट-टूटकर बिखरे थे हम।

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जिसने की मेहनत
उसको मिलती जीत है।

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रुह मिल जाती है परवरदिगार से।

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क्यों रहता है बुरा हाल मेरा।

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