Kusum Baheti   (कुसुम बाहेती)
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Words are the most precious thing use it wisely.✍️
My book - नज़राना लफ्ज़ो का..
Joined 13 August 2018


Words are the most precious thing use it wisely.✍️
My book - नज़राना लफ्ज़ो का..
Joined 13 August 2018
22 SEP 2022 AT 22:17

कैसे देखती है लोगो की आँखे मुझे,
जैसे निकाल लेगी जिस्म से जान,
पापा क्या उन आँखों से बचाने को,
तुम रखते थे मुझे खुदके पास।

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13 SEP 2022 AT 2:42

होने को क्या कुछ नही हो सकता,
आज हूँ मैं पर क्या पता कल न रहूँ।

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13 SEP 2022 AT 2:38

उतनी ही सब को मेरी जरूरत रही,
जितनी समंदर को रही पानी की कमी।

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9 SEP 2022 AT 18:49

कुछ कहाँ रह रहा है मुझ में मेरा,
कतरा - करता बिखर रहा है।

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8 SEP 2022 AT 0:38

दर्द में कितना सुकून है न,
रूक गया है मुझमे,
थम गया है मुझमे,
लौट न पाऊँ कभी में इस से,
दर्द में ही मेरा सुकून है

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6 SEP 2022 AT 20:08

सब कुछ खत्म होता जा रहा है,
मुझ में मेरा, मुझ से मेरा,
कतरा कतरा कर के टूट रहा है।

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5 SEP 2022 AT 0:47

ये तकलीफ बढ़ती ही जा रही है,
ना जान में जान आ रही है...
ना जान से जान जा रही है।

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17 AUG 2022 AT 1:16

अच्छे रहने का भी एक कर्ज़ चुकाया है,
सब को खुदका साथ देकर खुदको अकेला पाया है।

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17 AUG 2022 AT 1:14

थाम कर कोई हाथ मेरा,
कभी तो देखे आँखों में,
दर्द पढ़े और पढ़े मेरे सवालो को,
कभी तो रहे कोई साथ मेरे,
इतनी कमियों के बाद मेरे,
कोई तो देखे जज़्बात मेरे,
थाम के कोई तो मेरा हाथ रहे।

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10 JUN 2022 AT 21:54

रोकने की हिम्मत कहाँ हुई हमसे,
रूठने की ताकत कहाँ रही हम में,
एक ईश्क़ किया और बर्बाद हुए,
इज़हार करके भी हम कहाँ आबाद हुए।

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