आज मन बहुत बेचैन है
तुमको ढूंढ रहे मेरे नैन है
जाने ये रात कैसे कटेगी
तुम बिन सुबह कैसे सजेगी-
ज़िन्दगी के तज़ुर्बों ने बहुत कुछ दिया
तुम्हारी बेरुख़ी ने सब कुछ दिया,,,,!!-
काश तुमसे थोड़ी दूरी ही जो रखते हम
इश्क़ का कड़वा स्वाद ही न चखते हम
यूँ बातों-बातों में बढ़ जायेंगी नजदीकियाँ
अफसोस थोड़ा पहले ही संभलते हम
मेरी बेरुख़ी में भी मोहब्बत नज़र आयेगी
जान जाते तो कोई सितम ही न करते हम
ख़्वाबों में संग उड़ने लगे थे आसमाँ तक
काश, अपने कदम जमीं पर रखते हम
हालात-ऐ-ज़िन्दगी का ख़याल करना था
इश्क़ की रुसवाइयों से पहले ही डरते हम
झूठे वादे तेरी फ़ितरत है ख़बर होती गर
खुद पर यकीनन ही बंदिशें भी रखते हम
आज तेरी सोहबत को न तरसते अनसम
कितना अच्छा होता बात ही न करते हम
Ansam
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जिस बात पर है ग़ुरूर और नाज तुम्हें
मत भूलो कि मैंने ही दिए ये अंदाज़ तुम्हें
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कहते हैं कि हँसी से पवित्र कुछ भी नहीं,,हँसी हमें प्रार्थना के सबसे करीब लाती है,,जब हम समग्र होते हैं तब अहं का बोझ उतर जाता है,केवल हँसी बचती है,,
डॉक्टर्स तथा आधुनिक विज्ञान का भी कहना है कि खिलखिलाना,ठहाके लगाना,अकारण हंसना आरोग्य की कुंजी है,।
अगर लोगो के बीच फ़ासले कम करना हो तो दिल खोलकर हंसिये,,
और सबसे बड़ी बात कि हंसना हमारे मनुष्य होने का प्रमाण है,,
ये भी सच है कि कंप्यूटर कितना भी बुद्धिमान हो मगर हंस नही सकता,,है न,,।
अगर हम सप्ताह दस दिन न हंसें तो हम बेरौनक,कमजोर दिखने लगेंगे ,,बीमारियों का बुलावा अलग प्रकार की टेंशन होगी,,
जब हम सच्चे दिल से हंसते हैं तो हमारे अस्तित्व के सभी तल शारिरिक,मनोवैज्ञानिक,
आध्यात्मिक,--एक ही लय में कंपन करते हैं,हमारी बिखरी ऊर्जा को एक करते हैं,,।
लेकिन,,,point to be noted,,,
हंसना तो है मगर खुद पर,,दूसरों पर नही,,
तो चलिए,,आज से ही खिलखिलाने की शुरुआत करते हैं,,,😀😀-
ये न समझ बेबसी में मजबूर हुए जा रहे हैं
तुमसे इश्क़ है इसलिये हम दूर जा रहे हैं
कुछ तो सदियों का राब्ता महसूस हो रहा
शायद इसलिये आंखों में अश्क़ आ रहे हैं
तेरे हिज़्र में भी मेरे लबों पर मुस्कुराहट हो
आजकल खुद से खुद को आजमा रहे हैं
ये मत भूलो कि तेरे बगैर तन्हा है अनसम
आजकल ज़माने को हम अपना बना रहे हैं
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ये सूनी शाम सुहानी हो जाये
मुझपर तेरी मेहरबानी हो जाये
भर ले मुझको अपनी बाहों में
सारा मंज़र आसमानी हो जाये
मिल जाएं हम दो दीवाने अगर
फ़िर एक नयी कहानी हो जाये
हम रच डालें एक इतिहास नया
कि ये दुनिया दीवानी हो जाये
न उम्र न जात न रंग न मज़हब
अपना ये इश्क़ रूहनी हो जाये
चल चलते हैं कहीं दूर यहाँ से
ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो जाये
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ज़िंदगी में कभी - कभी कठिन फैसले लेने पड़ते हैं
दिल को धड़कन के बिन जीने के हौसले देने पड़ते हैं
जिस गैर को अपना क़रीबी समझ बैठते हम अनसम
उस अपने को भी गैरों की तरह फ़ासले देने पड़ते हैं-
तेरी गली में बार - बार आकर चले जाते हैं
हर बार तुझे ढूंढ कर मेरे नैन भर आते हैं
ख़ूबसूरत तो है आज भी शहर वो गली मगर
तुम्हारे बिन हर मंज़र उदास नज़र आते हैं
आने के सारे बहाने ख़त्म कर दिये तुमने
न पूछ ये शरारत मुझे कितना तड़पाते हैं
इस बेरुखी से मरे तो नहीं अब तलक हम
मगर जिंदा भी कहां महसूस कर पाते हैं
काश तुझे भी मेरी जरूरत हो मेरी ही तरह
ये ख़्वाब हम आंखों में लिए जिये जाते हैं
रुसवा न हो जाए मोहब्बत हमारी आसव
तेरी ख़ुशी की ख़ातिर तुझसे दूर चले जाते हैं
मेरी आवाज़ भी न जाये तुम तक अब कभी
ये सोच अपने जज़्बात लिखते हैं मिटाते हैं
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अकेले आये अकेले ही जाना है
इस आने-जाने के बीच में
जाने इतनी उलझनें क्यों हैं,,??
बख़ूबी जानते हैं हम सभी कि
मिट्टी का इंसान मिट्टी में ही
मिल जाना है एक दिन फ़िर भी
दिलों में इतनी नफ़रतें क्यों हैं,,??
कभी-कभी जी चाहता है मेरा
सबसे दूर एकान्त में खुद के
पास बैठकर पहचानूँ खुद को
मगर यादों की इतनी अड़चनें क्यों हैं,,??
सोचता तो बहुत है मन कि उदास
न हों कभी मगर ये मन भी न
जाने करता इतनी शरारतें क्यों है,,??
मोहब्बतें दी,इतनी खुशियाँ भी,,
फ़िर भी हम इंसानों को तुझसे
हरदम इतनी शिकायतें क्यों है,,??
मन भर गया है फरेबी दुनिया से
अब तो ज़रा रहम कर ऐ ख़ुदा
मुझको अपने पास बुलाने में
आख़िर तुझे इतनी जहमतें क्यों हैं,,??
Ansam
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