KUSHAL KANT PANT   (Kushal Kant Pant)
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Joined 22 August 2019


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Joined 22 August 2019
15 APR AT 22:22

एक दिन तुम्हे, मुझसे बेहतर मिल जायेगा,
एक दिन मुझे, तुमसे बेहतर मिल जायेगा,
एक दिन उसे, इससे बेहतर मिल जायेगा,
एक दिन इसे, उससे बेहतर मिल जायेगा,
एक दिन सबको अपना बेहतरीन मिल जायेगा,
क्योंकि,
अंत तक साथ निभाने वाला सबसे बेहतरीन होता है ।

- कुशल कांत पंत

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27 JUL 2023 AT 20:30

यूं ही नहीं मुझे जमाने का तजुर्बा आ गया ,
कोई शख्स था जो मेरी मासूमियत खा गया ।

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8 JUL 2023 AT 19:47

उनके होंगे रहबर चार,
हमारा एक ही है ।

उनने देखे होंगे नूर कई,
हमने निहारा एक ही है ।

जाने कब दिखेगा चेहरा असली,
अभी उसने नक़ाब उतारा एक ही है,

उसने एक पल में पराया कर दिया,
जो कहता था मेरा हो या तुम्हारा (हमारा) एक ही है।

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1 JUL 2023 AT 17:00

मैंने सोचा था,
की मेरे हिस्से में कुछ, पेड़ आयेंगे,
साल, सागौन, महूआ और
चार और तेंदू के पेड़,
हर्रा, बहेरा और कदंब के पेड़
सोंचा था क्या मैने चाहा था ।
जंगल से गुजरकर, मेरे खेत तक जाते हुए
वो पतली सी पगदंडी आएगी मेरे हिस्से में,
मैं बूढ़े पेड़ो के छांव में सुस्ता पाऊंगा,
छोटी छोटी नदियों के संग मन भर
घूम सकूंगा, देख सकूंगा उनके किनारे पर
उगे हुए विचित्र पौधे,
सारी प्रकृति को अपने आंखों से निहरूंगा,
और अपने पैरों से नापूंगा पूरा जंगल,
पर अब जंगल मुझे भूल गया है,
कभी बुलाता ही नही है,
ना मेरे लिए अब चार बचाता है, ना तेंदू
ना ही जामुन,या शायद
मैं जंगल को भूल गया हूं।

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8 MAY 2023 AT 20:26

अब घर लौटने को मन करता है,
माँ तेरे हर सपने को पूरा करने का मन होता है,
इस भीड़ भाड़ सी ज़िन्दगी में सूना सा महसूस होता है,
माँ तेरे प्यार की, खाने की, दुलार की,
अपनेपन की याद आती है,
अब हर उस ज़िम्मेदारी को उठाने का मन होता है,
अब बस घर लौटने कॊ मन करता है,
तुमको खुश देखने का मन करता है,
अब घर लौटने को दील करता है,
हर विशलिस्ट पूरी करने का मन करता है,
अब साथ रहने का मन करता है,

कामयाब बनकर घर लौटने का मन करता है,
हर उस कमी को पूरा करने का मन करता है,
तुम्हारी हर छोटी ख्वाहिशों को पूरा करने का मन करता है,

अब घर लौटने को मन करता है,
आई तू मला खूप आवडते
आई तू माझी घरी आली तू माझा प्रेम आहे

~ सपनीता

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3 MAY 2023 AT 0:58

मुझे मेरे गांव के सारे रास्ते मालूम हैं,
मैं जानता हूं के किन रास्तों पर चलकर,
आप उस तालाब तक पहुंच सकते हैं,
जो चारो ओर से हरे ऊंचे पेड़ो से घिरा है।
मैं वो रास्ता भी जानता हूं, जिस पर चलें
तो आप पहुंच जायेंगे उस जंगल में
जिसके गोद में लहलहाते खेत हैं,
मैं जानता हूं उस झील तक कोई किन रास्तों से
चलकर जा सकता है, जो ऊंचे पहाड़ों से घिरी है,
और जिसमे एक झरना, जो चट्टानों से खेलती हुई आकर गिरती है ,
मैं जानता हूं के इन खूबसूरत जंगलों के बीच से एक रास्ता जाता है, जो एक दूसरे गांव में जाकर मिलता है,
जहां चार, तेंदु और मीठे जामुन के कई पेड़ हैं ।
मैं जंगल के उस तालाब तक जाने का रास्ता भी जानता हूं,
जहां जंगली कमल के फूल खिलते हैं,
मैं उस छोटी सी नदी को भी जानता हूं जिसके एक किनारे पर, एक ऐसा पेड़ हैं जिसमे छोटे छोटे खट्टे फल लगते हैं,
मैं वो रास्ता भी जानता हूं, जिसपर चलकर आप पहुंच जायेंगे, खुटाघाट के एक छोर पर जहां आपको दिखेंगे
हरे-हरे खेत और पहाड़ों से घिरा हुआ बांध,
और धूप सेंकते मगरमच्छ,
मैं वो सारे रास्ते जानता हूं जिनपर गांव में सुकून है,
बस मैं ये नहीं जानता की अब शहर से वापस गांव
कौन से रास्ते जाते हैं ।

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11 AUG 2022 AT 1:20

थोड़ा थोड़ा झूठ

थोड़ा थोड़ा झूठ मैं मां से बोलता हूं
थोड़ा झूठ पिता से, और
थोड़ा सुपरवाइजर से

मगर तीनो पूरा पूरा झूठ पकड़ लेते हैं,

मगर जो झूठ मैं खुद से बोलता हूं,
वो कोई नही पकड़ पाता ना ही मैं ।

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14 MAR 2022 AT 23:58

मैं चुप चाप खड़ा,
एक अकेला पेड़,
अज्ञानी, नासमझ, बेवकूफ
जड़ खड़ा हुआ, बस खड़ा हुआ,
तुम्हे आते जाते देखता हूँ,
तुम्हारी चहलकदमी देखता,
खुश होता हूँ,
मैं जड़ खड़ा, खुश, एक अकेला पेड़,
कभी-कभी तुम मेरे छाएं में आती,
सुस्ताती, मैं और खुश होता,
पर मैं तुमसे कभी कुछ बोल न पाता,
मैं जड़, निःशब्द, एक अकेला पेड़,
तुमसे लिपटने को तरसता,
तुम्हारे साथ चलने को तरसता, चहलकदमी को तरसता,
मैं निःशब्द खड़ा, एक अकेला, तड़पता हुआ पेड़।

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26 FEB 2022 AT 8:32

आदमी होकर हम आदमी से लड़ते हैं,
ये हम किस तरह की त्रासदी से लड़ते हैं ।

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31 JAN 2022 AT 8:19

देखता हूँ दुनिया के हर शख्श को शक की नजर से,
पता नही कौन कब धोखा दे दे ।

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