इम्तिहानों के दौर में इत्मिनान बेहद ज़रूरी है
बस यही सबक पा लिया तो तैयारी पूरी है...
-
रब ना बनाउँदा है किसे दी जात वे सज्जना
चानण दे हिसाब नाल ही हुन्दी ए रात वे सज्जना
कुदरत ने कदे ना कीते फेर किसी वी रुत्ते
एथ्थे बन्दा ही बन्दे नू दिंदा ए मात वे सज्जना
-
के अभी भी आईने में जब खुदसे मिलता हूँ मैं
खुद के ही बिखेरे सपने यूँ लिखता हूँ मैं
सफेद कतरन छांट के तज़ुर्बे की कैंची से
फिर से उसी जोश से रंगों को सिलता हूँ मैं
-
थम गया है वक़्त भी इन बहती फ़िज़ाओं में
जैसे शुमार हुआ हो कोई फ़क़ीर सरपरस्त राजाओं में-
ये जग भ्रांतियों की मंडी है
जंहा कुल्फी गर्म और जलेबी ठंडी है
अपने ही नाम की लगाई सबने झंडी है
मैं श्रेष्ठ बाकी सब नीच,सोच कितनी गंदी है
-
दूसरों की सोचते सोचते, कंही खुद को भूल चले हम
डर लगता है कंही डगर से, डगमगा ना जाए ये कदम
नाम ये मोहताज नही, किसी खास पहचान का
रब से करूँ बस यही गुज़ारिश बन्दा मैं रहूं ईमान का
खाक से ही उठा हूं, खाक में मिलने से डरता नही
बद से भी बुरे दिन देखे हैं, नियत रखी हमेशा सही
ना कोई खास अरमान हैं, ना कोई शिखर की आरज़ू
पाक साफ जिस्म का पता नही, मन का मैं करता वजू....
-
कुछ दोस्त भाई बहन जैसे तो
कुछ भाई बहन ही दोस्त होते हैं
किसी के साथ हम दिल खोल के हंसते हैं
तो किसी के साथ दिल भर के रोते हैं
दोस्त वो जो परछाईं को भी बीच में ना आने दे
दुश्मन होंगे वो जो बात बात पे
रिश्ता तोड़ देते हैं
आम खास अज़ीज़ दिलफेंक
संज्ञाएँ इनकी एक से बढ़कर एक
दोस्त मित्र सखा बंधुवर
मूल्य इन शब्दों का सबसे बढ़कर
समेट लो दोस्ती के इन पलों को
क्या पता कल हो ना हो
-
जिस बिस्तर पे नींद लेती थी वो
वंहा इज़्तिराब लिए बैठी है लोरियां
मेरे सुकूँ की चर्खी भरती थी जो
आज खुद खाली सी है वो डोरियां
#इज़्तिराब-व्याकुलता
-
आज ही के दिन देश की आत्मा , आतंक से थर्राई थी ।
वीर सपूतों की लाशें , तिरंगे में लिपट के आई थी ।
कई घरों के चिराग थे बुझ गये , सूनी हुई कलाई थी ।
दुश्मन ने देश की आबरू पे , नापाक आंख दिखाई थी ।
करारा जवाब दिया था दुश्मन को , सांप की दुम कुचल दी थी ।
हौंसला इतना फौलादी था, दिशाएं हवा ने भी बदल ली थी
आज भी कई दुश्मन हैं भीतर, एक एक कर सफाया करो
सबसे पहले ठोको देशद्रोहियों को, बिल्कुल वक़्त ना ज़ाया करो ।
इसी देश की खाके जो , इस देश का बुरा तके ।
देश की अखंडता में लगे दीमक ये , कभी ना देश के हो सके ।
बहुत हुआ सम्प्रुभता पे हमला , अब तो माकूल जवाब दो ।
जितने भी हैं आस्तीन के सांप , सबको अब सीधे नाप दो ।-
क्योंकि मर्द को दर्द नहीं होता
संतान के भविष्य का जिम्मेदार तो है वो
पर संतान के प्यार का हकदार नहीं
संतान की परवरिश में है नगन्य परिभाषित
ममता की कहानियों में ये किरदार ही नहीं
-