kunwar thakur  
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Joined 25 November 2018


Joined 25 November 2018
9 JAN 2019 AT 19:29

।।जीवन रेखा।।

इस बात की क्यों मैं फिक्र करूँ
क्या खोना है क्या पाना है।
एक रोज मुझे और इस जग को
अग्नि दामन में जाना है ।।

एक हाड़ मांस की काया है,
जो माटी में मिल जाएगी।
एक नाम मिला जो दूजो से,
एक दिन दुनिया बिसरायेगी।

फिर भी इस काया के पीछे,
एक जोगी भी दीवाना है।
एक रोज मुझे और इस जग को
अग्नि दामन में जाना है ।।

सम्पूर्ण कविता नीचे पढ़े👇🏻👇🏻👇🏻

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8 JAN 2019 AT 20:40

दुनिया पढ़ती है मेरे नगमे और पूछती है मुझसे
कि मुझमे ये कला कहा से आया है।
नादान है दुनिया वो क्या जाने
कि दिल तोड़कर यह हुनर कमाया है।।

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23 DEC 2018 AT 0:13

।।चन्द लम्हा।।

चंद लम्हा ठहर जा तू साथ मेरे।
थाम लूँ अपने हाँथों में हाँथ तेरे।
चन्द लम्हा ठहर जा तू साथ मेरे।।

तेरी सांसो को मुझमे उतरने तो दे।
तेरी जुल्फों की बदरी बिखरने तो दे।
मेरी उलफत को थोड़ा सवरने तो दे।
तेरी बांहो में मुझको ठहरने तो दे।।

इश्क़ बनके तपिश यूँ जलाती रहे।
शम्मा बनके तू मुझको लुभाती रहे।
नींद बनके तू मुझको जगाती रहे।
ख्वाब बनके तू मुझको सताती रहे।।

फिर न आओगी नज़रो में उलफत भरे।
चन्द लम्हा ठहर जा तू साथ मेरे।।

Read whole poem👇👇👇👇

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19 DEC 2018 AT 22:58

सुहाना बचपन...…..

अरे राहगीरों कही से ढूंढ लाओ
मेरे बचपन के दिन वो सुहाने सुहाने।

वो आम के बगीचे वो कदम्ब की डाली,
जहा चलती थी हवाएँ होकर के मतवाली।
मैं चाहू फिर लौटे दोबारा वो घड़िया,
सजा दे वीराने में कुछ बचपन की लड़ियाँ।
आओ फिर न मैया वो लोरी सुनने।
मेरे बचपन के दिन वो सुहाने सुहाने

वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी,
वो मिट्टी के खिलौने बचपन की थी निशानी।
वो नन्हे मुन्हे यारो की छोटी सी टोली,
जो करती थी आपस मे मिलकर ठिठोली।
याद आया वो पल मैं लगा मुस्कुराने।
मेरे बचपन के दिन वो सुहाने सुहाने।।

वो अधरों की हँसी वो खुशियो का पिटारा,
आकाश में चमकता वो एक नन्हा सा तारा।
मैं चाहू की देखूँ बेफिक्र फिर से उसको,
बचपन मे घंटो मैं तकता था जिसको।
ये सोचा तो आंखे लगी झिलमिलाने।
मेरे बचपन के दिन वो सुहाने सुहाने।।

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17 DEC 2018 AT 11:35

छूटती यादे..........


माँ वो तेरे आँचल की ठंढ़ी छाया।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।

माँ वो तेरी लोरी की धुन।
सोता था जिसे मैं सुन सुन।
तेरी यादों ने मुझको कितना रुलाया।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।

जब तू अपने हाथों से मेरे बालो को सहलाती थी।
मेरी जिद को तू अपनी बातों से कैसे फुसलाती थी।
गया जहाँ भी मैं तेरी ममता को हमेशा संग पाया।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।

मेरी शिक्षा को लेकर तू रहती थी हर वक़्त परेशान।
उज्ज्वल हो मेरा भविष्य इसलिए करती दक्षिणा और दान।
तेरी मन्नत का धागा हर वक़्त गले से लटकाया।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।

बन गया मैं बड़ा बाबू हुआ पुरा तेरा सपना।
कल तक जो था एक पौधा वो अब बन गया तना।
तूने खुलकर खुशी बांटी और अपना हर्ष जताया ।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।

आ गया मैं तुझको छोड़कर अपनी जिंदगी सवारने।
तूने देखे थे जो सपने उन सब को निखारने।
तेरी भोली सी सूरत मन ने कभी न भुलाया।
जिसके सिवा दुनिया मे मुझे कुछ ना भाया।।


Read below........👇

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13 DEC 2018 AT 20:05

जब खोलूँ आँखे मैं देखु सुबह: की सौंदर्य सुधा को ।
जब देखु मुस्काते मैं प्रेममयी अपनी वसुधा को।।

जब देखु इंसान को मैं हर एक बात पर मुस्काते।
जब देखु सबको कलह कलेश के नाम मात्र से डर जाते ।।

जब देखु मैं हर घर मे रोशन घी के दीपक जलते।
जब देखु मैं घर घर में बेटा और बेटी साथ मे पलते ।।

जब देखु मैं एक भाई को दूजे भाई का चरण दबाते ।
जब देखु मैं नवल वधु को लंबे घूंघट में शरमाते ।।

जब देखु मैं किसी भवन में बूढो की पूजा होते ।
जब देखु मैं बच्चो को जिद के कारण झूठा रोते।।

तब मिलती है सच्ची खुशी इस अधर मधुर की सच्ची हँसी।।

सम्पूर्ण कविता नीचे पढें👇

कुँवर की कलम से.....

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11 DEC 2018 AT 22:06

कोई बात नही जो तू मुझसे वफ़ा न कर सका।
मेरी वफ़ा के जिक्र में नाम तेरा भी है।।
तू नज़रे न चुराना कभी मिल जाऊ जो यूँही।
तेरी बेवफ़ाई की कली रात मिली तो मेरी मोहब्बत का उजाला सवेरा भी है।।
कोई बात नही जो मेरे ख्वाबो की ताबीर पूरी न हुई।
तेरी खुशियों के लिए तो मैं खुद को भी मिटा दु।
मैं खुश हूं तेरे जाने के बाद भी ऐ हमसफर।
अब तूही बता दे अपनी उलफत की खुद को कैसी सजा दु।।

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10 DEC 2018 AT 23:10

क्यूँ सवालो की बारिश क्यूँ जवाबो का शोर हैं
क्यूँ मौसम हुआ आज विभात्स्य विभोर हैं।
किसको ढूंढे है निगाहे किस मंजिल की तलाश है
दरिया है मेरे आगे फिर क्यूँ अनबुझ सी प्यास है।
कदम भी बढ़ रहे है रास्ता भी कट रहा है
पर इस रात का स्याह साया क्यूँ नही छट रहा है।
क्यूँ चेत जड़ हुआ है क्यूँ मन मलिन हुआ है
क्यूँ नजर के पट पर छाया धुंआ धुंआ है।
क्यूँ कैद सी लगे है घर की सब दीवारें
क्यूँ मेरे हृदय का उद्गार है पुकारे।
क्यूँ रंग उड़ गया है क्यूँ सुर विहीन हु मैं
अपने मनस पटल की जाकर किसे कहु मैं।
लापता हैं शब्द मेरे मुख भी बधिर हुआ है
मौसम भी सरफिरा सा ये किस डगर चला है।
आशाएं शिथिल हुई है चंचलता मरी पड़ी है
हिमालय बनी ये उलझन क्यूँ सामने खड़ी है।
स्तब्ध सा खड़ा हूँ जज्बात भी लुटा है
अंतर हृदय में मेरे तूफान सा उठा है।
पीली पड़ी फिजाएँ रूठा सा क्यूँ पवन है
क्यूँ धूल ओढ़कर के मटमैल सा गगन है।
क्यूँ है गुबार दिल मे क्यूँ सजल नयन है
क्यूँ द्वंद सा मचा है किस बात का चयन है।

कैसा यह द्वंद उठा मुझमे कैसी यह पीड़ा जागी है
किसी विरहन की यह विरह दशा या कोई प्रेममयी अनुरागी है।।

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9 DEC 2018 AT 23:24

Always I talk to my night
O! Dark night....
So many mysteries you hide in your hem.
Never manifest, weaves thick toils with them.
The mysteries as stygian as you.
Every moment you create a new.
Always I talk to my night
O! Dark night.....
You are a sign of peace and ground.
You sing a melody with a soulful sound.
Nobody try to hear your immortal silence.
All they engaged only to spread violence.
Always I talk to my night
O! Dark night.......
A starlit sky, twinkling in you.
Often I stare them, try to reckon very few.
Suddenly I found a fallen my star mate.
As a soul fail of an incarnate.
Always I talk to my night
O! Dark night......
Why? You surmise so sad and solitude.
As when my heart renounce emotions and attitude.
You connect me to your darkness and mystery.
Compels me to remember my conflicting history.
Always I talk to my night
O! Dark night........
I search in you my soul mate’s shadow.
Which leads me in relic moment open thousands of window.
You and I cover our riddle in expression veil.
But our yarn is a furtive tail.
Always I talk to my night
O! Dark night........
I am with you till my last breath.
Being my mate under your broad cover beneath.

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9 DEC 2018 AT 0:23

चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।
हमे बाफक्र है उलफत में हम बदनाम हो गए ।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

गुमा है हम कही आपकी झूठी मोहहबत में ।
मगर हैरान है हम आप क्यों गुमनाम हो गए ।।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

हमारी बात ही छोड़ो हमारी कद्र ही क्या थी ।
मगर अपनी बताओ खास से क्यों आम हो गए ।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

हमारी आशिकी को आपने सबसे छुपा रखा।
शहर में आपकी फितरत के चर्चे तमाम हो गए ।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

सहर बनकर खिले थे जुस्तुजू में आपकी एक दिन।
बसर अब आपकी क़ुरबत में ढलती शाम हो गए।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

कभी इन मैकदो का रास्ता देखा न था हमने ।
नशे में आपकी हम भी छलकता ज़ाम हो गए।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए।।

हमे बाफक्र है उलफत में हम बदनाम हो गए ।
चलो अच्छा हुआ हम इश्क़ में नाकाम हो गए ।।

कुँवर की कलम से......

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