Kunwar Love Singh   (Kunwar Love Singh)
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तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी,
ॐ जय जगदीश हरे।।
Joined 17 July 2017


तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी,
ॐ जय जगदीश हरे।।
Joined 17 July 2017
17 NOV 2022 AT 21:29

इश्क़ की बीमारी है, दवा तेरी यारी है,
तू छोड़ तीर-ए-नज़र, मेरी मरने की तैयारी है।

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28 SEP 2022 AT 22:27

छोटी सी मुस्कान के पीछे कुछ छुपा नही पाओगे,
तुम्हारी शक्ल पर उदासी के नक्शे कुरेदे जा चुके हैं।

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26 SEP 2022 AT 23:36

घूमते भटकते आवारगी में कई बार
मैं प्रेंम करने वालों से टकराया हूँ,
लेकिन मसला हमेशा यह रहा कि मेरे पास
किसी को देने के लिए प्रेंम था ही नही।

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12 SEP 2022 AT 15:00

जा चुके हैं वो.. और ना लौटने का वादा कर गए,
खुद को आधा छोड़ गए या मुझको आधा कर गए।

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6 SEP 2022 AT 0:35

मेरे अंदर मैं मरता रहा.. जीती रहीं तेरी यादें,
मुझे ही खाती रहीं.. पोषित होती रहीं तेरी यादें।

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12 AUG 2022 AT 19:30

प्रेमी होना... शायर होने से ज्यादा बड़ी उपलब्धि है,
शायर के शब्दों से ज्यादा गहरा प्रेमी का मौन होता है।

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26 JUN 2020 AT 9:48

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5 DEC 2017 AT 19:51

तुमने नदियों के समंदर का हो जाने को प्रेम कहा,
मैं नदियों के मरुस्थल में खो जाने को प्रेम कहता हूँ।

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18 AUG 2017 AT 22:41

तुम्हारी उंगलियाँ कलम सी है जो लिखती है रोज़ कुछ लम्हे मेरी ज़िंदगी मे। उन उंगलियों से अपनी हथेली पर एक तारा बनाना चाहता हूँ, फिर जब कभी भी अंधेरा महसूस करूं तो वह तारा चमक उठे और रोशनी सी बिखेर दे मेरी ज़िंदगी मे। पता है, जब भी रेंगती है तुम्हारी उंगलियाँ मेरी उंगलियों के बीच, हर्फ उग आते हैं तुम्हारे ही नाम के, पोर पोर पे मेरी उंगलियों के। अबके मिलना न, तो अपनी उंगलियों से मेरे बदन पर लिख देना वो एक 'लफ्ज़', मैं सूफी हो जाऊंगा फिर। प्रेम की पराकाष्ठा मुक्ति ही तो है।

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9 AUG 2017 AT 0:49

लफ्ज...अल्फाज...कागज़ और किताब,
कहाँ-कहाँ रखा हमने, यादों का हिसाब।

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