कुन्दन "कुंज"   (Kundan Kunj)
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Joined 22 May 2018


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Joined 22 May 2018

रात भर तरपता है।
जब भी पलकें झुकाऊं
ठोकर मार जगाता है।
कुंज

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कैसे हो मेरे प्रिय दोस्तों?

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चलो आसमां की बुलंदियों को छूते हैं,
किसी ने पर कतरा है, हौसला नहीं।

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मेरे दुःख के सागर इतने गहरे हो चुके हैं,
जहाँ सहारा की पतवार बहुत छोटी है।।
कुन्दन

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उड़ने की तमन्ना है तो जमीं पर रेंगना छोड़ दो,
बुलंद हौसलों के पर से सारे जंजीरों को तोड़ दो।
बहने दो अविरल मेहनत की धारा में खुद को,
ग़र राह में बाधक बने आलस्य धर पकड़ मड़ोड दो।
कुन्दन कुंज

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नयन नाव है नीर का, केवट बना है मन।
पीड़ खड़ा है द्वार पर, लेकर यम का समन।
कुन्दन कुंज

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अभी थका हूँ,
हारा नहीं।
कुंज

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एकांत भीड़ की चोट का मंजर है,
उदास है बच्चा हाथ में खंजर है।
रौंदने वाले तो रौंदन कर चला गया,
अब इंसाफ़ का द्वार बना बंजर है।
कुन्दन कुंज

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तुम्हारी दोस्ती समंदर की इक लहर को भी सह न सकी,
और तुम बात करती हो यार उमर भर साथ निभाने की।

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बदला तो मैं भी हूँ,
बस तेरी चाहत में।

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