इन निगाहों ने उनका...
हर पल दीदार मांगा....
रात अमावस ने जैसे....
हर पल चांद मांगा..!!
ना जाने क्यूं रुठ...
गया रब हमसे....
जब हमने उनका.....
हर पल साथ मांगा..!!-
जो गलतियां मिले तो विद्यार्थी समझ माफ़ करना।
क्यु मोहब्बत ढूंढते हो इश्क की तहरीर में
फर्क़ होता है बहोत पायल और जंजीर में !
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"तुझे तू लिखूं या खुद से कोई इशारा कर लूं"
"आज जाम उठाऊँ या अश्को से गुजरा कर लूं"-
मैं क़तरा हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना समंदर की ज़िम्मेदारी है !
कोई बताए ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है !
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चराग़ कई आँधियों पे भारी है !-
उनके होठों पे थी जुम्बिश थी लरज आंखों में
क्या ये इकरारे-मुहब्बत को नहीं काफ़ी था।
उनके अल्फ़ाज़ तो कुछ और कहे जाते थे
पर मेरा उनकी निगाहों पे यकीं काफ़ी था।-
ख्वाइश है कि शायर से फसादी हो जाऊ,
सुसाइड बेल्ट से ऐसे लिप्टु की जेहादी हो जाऊ।
तुमने जो भी बम पकड़ा दस गुना छोड़ आए है,
फसादी है लेकिन एक दुनिया छोड़ आए है।
कई आंखे अब भी ये शिकायत करती रहती है,
की दिल्ली में कुछ जिंदा लासे मैं छोड़ आया हु।
उंगलियां जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,
की कुछ काफिर घरो को बिन जलाए छोड़ आए है।-
इबादत तो की हमने पर अदावत ना हो सकी,
देख तेरी मासूमीयत खिलाफत ना हो सकी।-
अज़ीब सी कश्मकश है,
जो आंखों पर छाई है।
अज़ीब सी कश्मकश है,
जो आंखों पर छाई है।।
तेरे इश्क़ का ज़ुनून इस क़दर छाया है,
जीते-जी ख़ुद का फ़ातिहा पढ़ आया हूँ।।।-
उतना नुकसान नहीं किया है,
उन “विदेशी तलवारों” ने;
जितना नुकसान किया है,
इन हिंद के “गद्दारों” ने...-