तुम्हारे वियोग में
मेरे आँसुओं ने मुद्दतों तक
गुरुत्वाकर्षण के नियमों से बग़ावत की,
उन्हें धरती पर गिरने से रोका,
आँखों में सूख जाने दिया।
तुम्हारे ख़ातिर,
मैंने आँसुओं से छलावा किया।
― कुन्दन चौधरी
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हम एक दूसरे के तस्वीरों को
होठों से चूमकर
सहेजते थे,
हमने तस्वीरों के साथ-साथ
दुःखों को बाँट लिया
तुम्हारा दुःख
नाभि में छिप गया,
किसी शख्स की उंगलियों के स्पर्श से
दूर तो होगा, मिट नहीं पाएगा
बिना मेरे
तस्वीर को चूमे,
मेरा दुःख
भाषा में छिप गया
जो तुम्हारे नाम लिखने भर से
समाप्त होने लगता है।
― कुन्दन चौधरी
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मेरे हँसी का
आख़िरी पता तुम्हारा ओंठ था,
तुम्हें गले लगाने से
आख़िरी बार
मेरे दुःख को पनाह मिली
आख़िरी अलविदा में
तुम्हारे लिए चंद शब्दों की कविता
"एक जुगनू था
जो चाँद से कभी शिकायत नहीं किया
अंधेरे होने की "।
― कुन्दन चौधरी
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तुम्हारा दिया
गुलाब टूट चुका है
काँटा अब तलक फँसा हुआ है ज़ेहन में-
नदी मुड़ जाए !
तुम एक कविता की सारांश बनकर आई
एक अंतहीन कहानी बनाकर चली गई
तुम्हें मंदिर की मूरत की तरह पूजा
मग़र तुम, बहती नदी की तरह चली गई
जहाँ-जहाँ से गई
मेरे शरीर पर तुम्हारे मनमानी का
यादगार निशान पड़ता रहा
तुम्हारा प्रेम,
यादों के पन्नों के अलावा कुछ नहीं था
तुम्हारे दिए उन यादों को
ईश्वर का भेंट मानता हूँ
उन्हें रोज पूजता हूँ,
कि शायद किसी दिन
नदी मुड़ जाए!-
|| वेदना ||
उस शुक्रवार की आधी छुट्टियों की तरह
वह मुस्कुराती हुई
बिस्तर पर लेटी हुई है
आधी नींद में
अधखुले आँखों से
एक नाहक गर्म सा सपना देखते हुए
मुझे सर्द शनिवार की तरह भींच लेती है
दाँत और जीभ के बीच से
मधुर स्वर में कहती है
मैं तुम्हें जकड़े रखूँगी
अलसाई रविवार की तरह अपने बाहों में
यह कहते हुए
वह झाँक रही है
दफ़्तर से थके हुए मेरे आँखों में
और शायद उसने देख ली
मेरे पलकों पर ठहरी हुई
सोमवार की
उदास सुबह।
― कुन्दन चौधरी
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|| प्रतीक्षा ||
लौट आएगी
उदास दिन
मुस्काता चाँद
अनमने से रास्ते
बेरंग पहाड़, फूलों की गंध
उनका प्रियतम मौसम
एक क्षण के लिए ही
उनके पास लौट आएगी
मेरे साथ गुज़ारा हुआ समय
नहीं लौट पाती
किसी के प्रतीक्षा में
आँखों से सूखे हुए आँसू
― कुन्दन चौधरी
(पूरी कविता नीचे कैप्शन में पढ़ें)-
| तुलना |
औरत के दिल में
पुरुषों के लिए
प्रेम भरा होता हैं।
जबकि,
पुरुष के ह्रदय में
औरतों के लिए
उनके चरित्र का
समीक्षा भरा होता हैं।
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भूख की भट्टी में सोचने और समझने की ताकत
जल-भूनकर ख़ाक हो जाती है बबुआ।
साभार : बाबा बटेसरनाथ
#नागार्जुन #यात्री
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