खुली आंखों में आने लग गए है तुम्हारे "ख्वाब' मुझे
जिंदगी के काटों के बीच संवार रहे है तुम्हारे दिए "गुलाब" मुझे-
वो जिन्हें ढूंढ़ते हो तुम मस्जिदों - मंदिरों में।
वो खुद तुम्हें ढूंढ़ता है ज़मीन पर।।-
बहुत कुछ दफ़न है इन दरखतों में,
तुम इजाज़त दो तो एक एक किवाड़ खोलूं।
घुट रहा है रोज़ाना बवंडर जिन बातों का,
तुम इजाज़त दो तो सारी बातें बोलूं।
और, ये इत्तला है तुम्हे की ये अश्क मेरे चाल चलन में नहीं
वो जो अगर सीने से लगा लो तुम एक दफा,
तो आख़िरी रात मैं जी भर के रो लूं।।-
उधड़ी पड़ी ऊन से फिर तुम्हीं को बुनना है।
मुझे अपनी कहानी में सिर्फ एक तुम्हीं को सुनना है।
और तुम्हें होती होगी दिक्कत तराशने में,
मुझे तो हर नज़र से सिर्फ़ तुम्हीं को चुनना है।।-
ज्यादा हो जाती हैं बेचैन ये आंखें तो तुम्हारी तस्वीरों से ढक लेते हैं।
हम वो शाख है डाल की जो पुराने पत्तों को आंधीयों में भी सहेज के रख लेते हैं।
और जब बिल्कुल ही नहीं रहा जाता है तुम्हारे बगैर, तब
ख़ुद को धोखा देकर हम आसमां में चांद को तक लेते है।।
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मुलाज़िम हैं हम उसके हर लहज़े के
उस आवाज़ में एक रूहानी राग नज़र आता है।
उनसे क्या ज़िक्र करें हम अपनी बेदाग मोहब्बत का,
जिन्हें चांद में नूर नहीं सिर्फ दाग़ नज़र आता है।।-
उसे अपने ख्वाबों से पिरो कर
संगेमरमर की बेशकीमती मूरत बना दूं।
वो जो चांद से भी बढ़ कर है नूरानी उसे
अपनी कलम से लिख और खूबसूरत बना दूं।।-
सबकुछ रो रहा है मेरे भीतर मेरी आंखों को छोड़कर।
हर चीज़ पर यकीन कर लेता हूं अब सिर्फ़ बातों को छोड़कर।
सबकुछ जान कर मुस्कुराना अब आदत है मेरी,
और हां अब वो मेरा नही है, बिल्कुल नही है, सिर्फ़ रातों को छोड़कर।।
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सूखा पड़ा है जो ये ख्वाइशों का समंदर मेरा उसके लिए सावन बनोगे।
इस कसोल मनाली वाले ज़माने में क्या तुम मेरे साथ वृंदावन चलोगे।।-
सब को पसंद हूं मैं उनकी सहूलियत के हिसाब से।
जिसका करा मन, निकाल फेंक दिया किरदार मेरा अपनी किताब से।।-