वो चलती नहीं बस बहती थी
सच सीधे दिल की कहती थी
कुछ कहते थे वो आशा थी
कुछ कहते महज़ तमाशा थी
वो बादल बिजुरी हंसती थी
वो काजल काजल रोती थी
कुछ कहते, दिल को दिलासा थी
कुछ कहते केवल झांसा थी
रेती मुट्ठी से फिसल गयी
वो वक़्त के जैसे बदल गयी
वो जीवन की परिभाषा थी
कुछ कहे जुवे का पासा थी
जब गयी तो आखिर समझे हम
वो कुदरत बन के आई थी
जिस लम्हा वो हम एक हुवे
बस उस लम्हे की कमाई थी
वो आई आ कर चली गयी
वो शाम सुहानी ढली गयी
कुछ कहे के रूपा सोना थी
कुछ कहे के ताम्बा कांसा थी
अब ना जाने कहाँ रहती है वो
जाने कौन दिशा में बहती है वो-
एकदा मैफिलित माझ्या भेट बोलतो मी....
वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था,
सिर्फ़ ग़ज़लें नहीं, लहजा भी ग़ज़ल जैसा था।
वक़्त ने चेहरे को बख़्शी हैं ख़राशें वरना,
कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था।
तुमसे बिछडा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था।
कोई मौसम भी बिछड कर हमें अच्छा ना लगा,
वैसे पानी का बरसना भी ग़ज़ल जैसा था।
नीम का पेड था, बरसात भी और झूला था,
गांव में गुज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था।
वो भी क्या दिन थे तेरे पांव की आहट सुन कर,
दिल का सीने में धडकना भी ग़ज़ल जैसा था।
इक ग़ज़ल देखती रहती थी दरीचे से मुझे,
सोचता हूं, वो ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था।
कुछ तबीयत भी ग़ज़ल कहने पे आमादा थी,
कुछ तेरा फ़ूट के रोना भी ग़ज़ल जैसा था।
मेरा बचपन था, मेरा घर था, खिलौने थे मेरे,
सर पे मां-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था।-
बच्चे उड़ गये अकेली चिड़िया रहती है।
बड़ी सी एक हवेली में बुढ़िया रहती है।।
ये ख़्वाब ले गये आँखों को अपने साथ
अब अकेली काजल की डिबिया रहती है।
जिस पर बैठ कर फूले नहीं समाते थे
कोने में धूल चढ़ी वो फटफटिया रहती है।
महक ले गया हो कोई फ़िज़ा की सारी
और बिन फूलों की कोई बगिया रहती है।
सिमेट कर दुनिया भर का शोर
तन्हाई की दुनिया में एक दुनिया रहती है।
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मर्द ने औरत को क्या दिया ??
शायरी में जगह दी,
होंठों में शराब दी,
हाथों में कंगन दिए ,
और पैरों में पाजेब दी,
क्या क्या दिया....
और क्या क्या न दिया....
पंखों को काटा उसके
और,
बुल-बुल का उसको नाम दिया !!!
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ये कैसे कैसे खेल रचाती है रोटियां,
उंगली पे अपनी नचाती है रोटीयां,
दो जून की तलाश में परदेस आ गए,
अब याद मां के हाथों की आती है रोटियां,
आसानी से मिले जिसे किमत न जाने वो,
मुश्किल से मिलती है; उन्हें भाती है रोटियां,
महबूब ढूंढ़ते है सभी चांद में यहां,
भूखे को चांद में भी नज़र आती है रोटियां !
कपड़ा मकान और रोटी का ही खेल है सारा यहां,
कुछ हार जाते है; कुछ को हराती है रोटियां !!!
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" you're the one that you'll be stuck with."
(Read the entire piece in caption)-
"Mujhe mehnge tohfe bahot pasand hai"
Toh agli baar yun karna ki zara sa "waqt" lete aana-
हाय.. जिस्म की बनावट
किस चाक पे बनी है?
किस रंग ने रंगा है?
किस घाट पे सनी है?
जी चाहता है उसपे
कुछ नज़्म सा लिखूं मैं
जी भर के उसको रंगू
फिर रंग चूम लूं मै
उफ्फ...उसकी नाज़ुकी अलहदा
पत्ते पे ओस जैसी
वो गुलमोहर सी लड़की-
इक दीप सा जले है
वो जब भी मुस्कुराए
वो हाथ भी बढ़ा दे
तो चांद तोड़ लाए
हर शय पे उसका काबू
हर चीज़ उसके मन की
वो गुलमोहर सी लडक़ी-
रिश्ते भी अब कहां पुराने से रहे,
आप बुलाने से रहे...
हम आने से रहे...-