Kunal Kanpuri   (कुनाल कानपुरी)
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✍️Writer✍️
Joined 3 May 2021


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Joined 3 May 2021
17 HOURS AGO

नफरतें रहीं उम्र भर किसीसे, किसीने इश्क़ में सराबोर कर दिया,
कोई सोता रहा रात भर चैन से, रोते हुए किसीने रात से भोर कर दिया...
मैं इनकी उम्र में था कभी, ये बच्चे जो मुझको सिखाते हैं मोहब्बत,
जो भटकते फ़िरते हैं गली-गली आँवारगी में, कभी इसके तो उसके नाम का शोर कर दिया...

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21 APR AT 14:39

कुछ खत पुराने पढ़कर, आज फ़िर तबीयत नासाज़ सी है,
कंबख़्त कैसा जहर था वो, जो अब भी मरने नहीं देता;
मेरे हक में करता था दुआ कभी, अब कोई बात भी मुश्किल है,
उसकी आँखें याद हैं अब भी, वो मुझे अब भी जीने नहीं देता;
झूठ कहता है दुनिया से हर वक्त क्यों 'कुनाल, नजरें मिलाता है जब आईने से, 'वो' तुझे अब भी रोने क्यों नहीं देता ;
इतनी समझदारी कहाँ जाएगा लेकर,
वो तेरे बाहर का इंसाँ अब भी तुझे हँसने क्यों नहीं देता;
पढ़ने वालों को लगती है मेरी हर शायरी अधूरी,
तू ही बता, तू मुझे अपनी कोई ग़ज़ल पूरी करने, क्यों नहीं देता...
कंबख़्त कैसा जहर था वो, जो अब भी मरने नहीं देता...

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17 APR AT 0:08

जब सो जाए मेरे बाहर का इंसान,
तब बाहर आना तुम मेरी कविता बनकर...

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9 APR AT 0:31

।।अब लिखा नहीं जाता।।

बहुत कोसता हूँ खुदको कि अब लिखा नहीं जाता,
सोचता रहता हूँ बहुत कुछ मगर कुछ कहा नहीं जाता;
ऐसा नहीं कि उसके बगैर हम रह नहीं सकते,
झूठी तसल्लियाँ हैं, सचमुच उसके बगैर अब रहा नहीं जाता...

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3 MAR AT 10:21

जब नौकरियां लगी तो पुरुषों ने अपना घर छोड़ा, जब शादियाँ हुईं तो महिलाओं ने अपना घर छोड़ा, अपना गाँव छोड़ लोगों ने नए छोटे शहर बसाए और फ़िर उन्हीं छोटे शहरों से निकले लोगों ने बसाए वापस से कई बड़े शहर, और इसी बड़े बनने की ज़िद में लोग बेघर हुए अपने गाँव से, अपने शहर से, अपने मन से और चले गए विदेश कुछ बड़ा करने की ज़िद में और...
फ़िर वही लौट कर आते हैं अपनी मिट्टी में मेहमानों की तरह कुछ सुकूँ के पल तलाशने और ढूँढने उस गाँव को जिसे बहुत पहले उनके पुरखों ने छोड़ा था उनकी किस्मत चमकाने को...

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18 FEB AT 22:46

फ़कत इतना ही बिगड़ने की इजाज़त थी हमें,
तेरी याद में रोए ज़रूर, मगर आँवारा ना हुए...

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11 FEB AT 10:27

अब तो बहकाने लगीं हैं हमको कुछ तस्वीरें पुरानी,
ऐसा पहले तो नहीं था, कुछ नया है यह सब...
मेरी आँखों को पढ़ो अब कोई चश्मा लगाकर,
पहले तो इनमें दरिया नहीं था, कुछ नया है यह सब...
ख्वाहिशें अधूरी पहले भी थीं,कोई मसला नहीं था लेकिन,
फ़कत दोस्ती अधूरी रह गयी, कुछ नया है यह सब...
कई राहों पर भटके, बिछड़े और तबाह हो गए लेकिन,
अबकी भटके तो वापस ना पहुँचे घर भी, कुछ नया है यह सब...

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4 FEB AT 8:50

कहो तो गिरा दूँ सारी दीवारें भ्रम👽 की तुम्हारी,
मेरी औकात कहीं ज़्यादा है गुमान से तुम्हारे 😎

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4 JAN AT 19:07

वही पुरानी साजिशें कर रहा है कोई,
फ़िर वही ख्वाहिशेें जी रहा है कोई...

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3 JAN AT 11:27

मेरे किवाड़ पर दस्तक देने वाले, क्या खबर है तुझे?
मेरी झोली में अब मैं भी नहीं किसी को देने को लिए...

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