जिम्मेदारियों ने खुद का गुनेहगार है बना दिया है
छोटी सी उमर में जिन्दगी का भोज ढो रहे हैं हम
मौत भी अपनी नहीं और ये जीवन भी अपना नहीं ढो
बस जीए जा रहे है
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मैं इश्क कहूं तुम "बनारस" समझना
मैं सुकून कहूं तुम "संगम" समझना
-Unknown
और जब मै जन्नत कहूं तो तुम "सिक्किम" समझना....❣️-
He promised me that he will bring all the rainbow colors in my black and white life but ended up snatching the white color.
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ना दूर जाओ हमसे क्योंकि
दूरियां जुदाईयां लाती हैं
और
हम तुमसे जुदा नहीं होना चाहते हैं....-
तमाशा बनाना भी कितना हसीन होता है
भरे बाज़ार नाचना पड़ता है
दूसरों को हसाने के लिए....-
जब मैं बुत बन कर बिक रही थी,
भरे बाज़ार में....
उस दिन दुनियां - जहान खुशियां मना रही थी....।-
थक गया हूं मैं...
जरा जुल्फें बिखेर दें मेरी महबूबा...
थक गया हूं मैं...
जरा सा आराम दे मुझे...
घेर ले मुझे अपनी बाहों में...।
जरा जिंदा होने का एहसास दे मुझे...
थक गया हूं मैं...
मुहब्बत मुकम्मल होने के इंतजार में...l
जरा यूं कर...
इन घनी जुल्फो की छाव में...
कुछ ऐसा पीला की मर जाऊ मैं...
तेरी बाहों में...।
मुहब्बत भी मुकम्मल हो जाएगी...
तेरी बाहों में...
जरा जुल्फें बिखेर दें मेरी महबूबा...।
थक गया हूं मैं...
मुहब्बत मुकम्मल होने के इंतजार में...l
-©Kumkum ''आशा"
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वो महफ़िलें नहीं रहीं,
वो लोग भी नहीं रहे...
जब पीछे मुड़कर देखती हूं,
तो गांव भी नहीं रहा...।
वो बचपन की गलियां नहीं रही
ना खिलखिलाती शाम रही
ना तो वो श्वान की बारिश रही
ना तो वो कागज की कश्ती रही
ना तो वो गांव की मस्ती रही
ना वो जज़्बात रहे
ना वो नादान दोस्त रहे
वो महफ़िलें नहीं रहीं,
वो लोग भी नहीं रहे...
जब पीछे मुड़कर देखती हूं,
तो गांव भी नहीं रहा...।
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मेरे अपनों की लड़ाई में
मेरे सपने खो गए
मैं तो बस दूसरे के हाथों की
कठपुतली बन कर रह गई।
चीखी थी मैं....
चिल्लाई थी मैं....
इन धागों से मुक्ति पाने की
कोशिश की थी मैंने
पर इन धागों से मेरे ही हाथ कट गए
इन धागों में उलझ कर
मेरे सपने ही मर गए....
मेरे अपनों की लड़ाई में
मेरे सपने खो गए..... ।
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