Kumkum Sharma   (©Kumkum "आशा")
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M.A. (History)
Joined 29 April 2018


M.A. (History)
Joined 29 April 2018
7 SEP 2022 AT 11:44

जिम्मेदारियों ने खुद का गुनेहगार है बना दिया है
छोटी सी उमर में जिन्दगी का भोज ढो रहे हैं हम
मौत भी अपनी नहीं और ये जीवन भी अपना नहीं ढो
बस जीए जा रहे है

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3 FEB 2022 AT 8:54

मैं इश्क कहूं तुम "बनारस" समझना
मैं सुकून कहूं तुम "संगम" समझना
-Unknown

और जब मै जन्नत कहूं तो तुम "सिक्किम" समझना....❣️

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30 NOV 2021 AT 9:25

He promised me that he will bring all the rainbow colors in my black and white life but ended up snatching the white color.

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10 APR 2021 AT 17:08

ना दूर जाओ हमसे क्योंकि
दूरियां जुदाईयां लाती हैं
और
हम तुमसे जुदा नहीं होना चाहते हैं....

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22 MAR 2021 AT 13:06

तमाशा बनाना भी कितना हसीन होता है
भरे बाज़ार नाचना पड़ता है
दूसरों को हसाने के लिए....

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16 FEB 2021 AT 2:16

जब मैं बुत बन कर बिक रही थी,
भरे बाज़ार में....
उस दिन दुनियां - जहान खुशियां मना रही थी....।

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10 FEB 2021 AT 1:22

Nigh without stars is like
Blossom without flowers.

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10 FEB 2021 AT 1:03

थक गया हूं मैं...

जरा जुल्फें बिखेर दें मेरी महबूबा...
थक गया हूं मैं...
जरा सा आराम दे मुझे...
घेर ले मुझे अपनी बाहों में...।
जरा जिंदा होने का एहसास दे मुझे...
थक गया हूं मैं...
मुहब्बत मुकम्मल होने के इंतजार में...l
जरा यूं कर...
इन घनी जुल्फो की छाव में...
कुछ ऐसा पीला की मर जाऊ मैं...
तेरी बाहों में...।
मुहब्बत भी मुकम्मल हो जाएगी...
तेरी बाहों में...
जरा जुल्फें बिखेर दें मेरी महबूबा...।
थक गया हूं मैं...
मुहब्बत मुकम्मल होने के इंतजार में...l


-©Kumkum ''आशा"


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8 FEB 2021 AT 5:26

वो महफ़िलें नहीं रहीं,
वो लोग भी नहीं रहे...
जब पीछे मुड़कर देखती हूं,
तो गांव भी नहीं रहा...।
वो बचपन की गलियां नहीं रही
ना खिलखिलाती शाम रही
ना तो वो श्वान की बारिश रही
ना तो वो कागज की कश्ती रही
ना तो वो गांव की मस्ती रही
ना वो जज़्बात रहे
ना वो नादान दोस्त रहे
वो महफ़िलें नहीं रहीं,
वो लोग भी नहीं रहे...
जब पीछे मुड़कर देखती हूं,
तो गांव भी नहीं रहा...।

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25 JAN 2021 AT 22:37

मेरे अपनों की लड़ाई में
मेरे सपने खो गए
मैं तो बस दूसरे के हाथों की
कठपुतली बन कर रह गई।
चीखी थी मैं....
चिल्लाई थी मैं....
इन धागों से मुक्ति पाने की
कोशिश की थी मैंने
पर इन धागों से मेरे ही हाथ कट गए
इन धागों में उलझ कर
मेरे सपने ही मर गए....
मेरे अपनों की लड़ाई में
मेरे सपने खो गए..... ।

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