आज फिर आई हूं अपने शहर....!
"बड़े अरसे बाद, फिर दर्द हो रहा है ना।
उस पराय शहर ने रोने कि भी जगह नहीं दी,
दरवाज़े तो हमेशा खुले हैं इस शहर के हर कोने में तुम्हारी बुने हुए चीज़े हैं यह भी अकेले पड़ चुके
हर शाम दरवाज़े पर बैठ कर तुम्हरा इंतज़ार करती है..!
कोई है अपना तुम्हरा इंतज़ार में कहना चाहती है..!
आ कर सिमट जाओ इन अकेले कोने में बैठे उदास सपनों से और केह दो एक बार कि तुमने भी इन्हें बहुत याद किया......... Will continue!
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