गर ना हुआ तो भी सही,
ग़र हो गया तो भी सही।
कि, बिन महफ़िल शायरी नहीं,
और शायरी बिन महफ़िल नहीं।
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kumar vidrohi
(Kumar vidrohi)
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ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ (ਦੋਆਬ) (pB07)
Joined 15 June 2020
3 NOV 2023 AT 10:24
2 NOV 2023 AT 22:20
कि, तू हमारे,
हर मर्ज का इलाज है,
और तेरे बिना ज़िन्दगी जीना,
हमारे लिए हराम है।-
2 NOV 2023 AT 21:48
कि, मंसूबा भी वाज़िब ना था फूल का,
सिर्फ़ नामवारी के लिए दोस्ती कांटों से करली।-
2 NOV 2023 AT 21:37
चन्द लम्हों की थी जो हमारी ख्वाहिश,
पूरी होते-होते रह गयी मेरे साहिब।-
2 NOV 2023 AT 21:20
कि, तन्हाई में उनकी,
मर जाते हैं हम।
ये कितना अच्छा होता,
ग़र जुदा ना होते हम।-
12 JAN 2022 AT 15:27
कुमार क्या ढूँढ रहे हो ?
इस अनजान शहर में।
चलो चलते हैं वहां,
अपने आशायने में।
सकूं है यहां,
और उनकी यादें भी।
वो ही भूलें हैं,
तुम तो नहीं।
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12 JAN 2022 AT 0:50
गर करदी मेहरबानी, मान ली गुजारिश,
और भीग गये साथ,
तो क्या जिन्दगी भर के लिए हो जाओगे हमारे आप ?-
12 JAN 2022 AT 0:35
उनका आना था, कि
हम आबाद हो गये।
पर उनके जाते ही,
असलीयत से फिर वाकिफ हो गये।-
12 JAN 2022 AT 0:23
कि, इस तरह की ना चाहिए थी जिन्दगी,
ला इसमे कुछ मर्ज़ी के रंग भर दूँ।-