सूख जाती है कलम की स्याही मेरी ,
मां जब भी तेरी जिक्र होती है,
डांट कर हमें खुद रोती है,
मां तो बस मां होती है।
मुझसे ज्यादा वह मुझे जानती है
साया बन चलती है साथ मेरे,
हर धूप में मेरी वह छांव बन जाती है
खुद सह लेती है तकलीफे लाखों
लेकिन मुझ पर एक खरोच भी ना सह पाती है ,
मां तो बस मां होती है।
अपनी कलेजे के टुकड़े की खुशियों के खातिर
पूरा अधिकार वो किसी और को सौंप देती है ।
ऐसे ही नहीं मां त्याग की मूरत कहलाती है,
मां तो बस मां होती है।
दूर रहकर भी वलाओं को टालती रहती है ,
ममतामई त्याग की मूरत दुआ बन कर आती है
हर मुश्किलों से हमें बचाती है
ना होगा कोई मां के जैसा
मां तो बस मां होती है।
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