तुम आयी मेरी दुनिया में,
सावन में आयी बहार प्रिये।
तेरी बारिश में महक उठा,
मेरा सारा संसार प्रिये।।
इस जालनुमा दुनिया से तुम
ही मुझे रिहाई देती हो,
जीवन की आपा धापी में,
इक तू मेरा इतवार प्रिये।
यूँ इक दूजे का साथ रहे,
भोले बाबा का हाथ रहे,
तुम ही मेरी सीमा भी हो,
तुम ही मेरा विस्तार प्रिये।
सात जन्म का वादा तेरे,
जन्मदिवस पे दुहराता मैं,
तेज़ उफनती लहरों में भी ,
छोडूंगा ना पतवार प्रिये।
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जुट गई है भीड़ भी, उस्ताद की इल्मियत है जी
नाच जमूरे, नाच रहे, ढंग जम्हूरियत है जी-
सीखा नही हमने जीना हिसाब से ,
जिंदगी को हम बेहिसाब जीते हैं ।
जिंदगी के हिसाबों में लगे जो हैं ,
जिंदगी भी वो क्या ख़ाक जीते हैं ।-
मेरे दिन को तितली बन कर,रंगों से तू भरती है।
रातों में जुगनू भी बन कर,रौशन घर-भर करती है।
तू तुलसी मेरे आँगन की, हर विपदाएं हर लेती ,
हर दिन उत्सव सा होता है, जब तू साज संवरती है।
घोर कुहासा छा जाये या बरसे आग, गिरें ओले ,
ऋतु बसंत के जैसी तेरी आभा सदा बिखरती है।
मैं गंभीर झील जैसा तू झरने के जैसी अल्हड़,
दोनों के पानी की सीरत हुआ एक ही करती है।
स्वाति बूंद बन कर मेरे मरु-जीवन पर तू बरस गई,
संग असमतल राहें तेरे, सुगम जान सी पड़ती है।
हाथों पर जब हाथ धरा, सारी रेखाएं उलझ गयीं,
मेरी जीवन, भाग्य, तुम्हारे साथ गुजरती हैं
हाथों में तेरे डाला हाथ, हस्त रेखाएं उलझीं
आड़ी टेढ़ी पटरी पर से मेरी रेल गुजरती है।
मेरे दिन को तितली बन कर,रंगों से तू भरती है।
रातों में जुगनू भी बन कर, रौशन घर-भर करती है।-
ज्यों-ज्यों होते जा रहे, बेटा-बेटी ''पास''।
त्यों-त्यौं होते दूर वे, बता रहा इतिहास।।-
सदा चार कंधे लगें, ज्यों गुजरे दिन चार।
"सदा-चार" के साथ जी, कर भवसागर पार।।-
बीते बारह साल भी ऐसे, जैसे बारहमासा ।
आंधी, तूफ़ां, गर्मी, सर्दी, बारिश और कुहासा ।
उसी रिवाजी दौड़ में दुनिया हरदम दौड़ लगाती ,
मगर रुके तो जाने सही सफलता की परिभाषा ।।
लगातार मृग पास पहुँचता, मरीचिका ना पाता,
शाम को घर को लौटा, हारा, थका, और भी प्यासा ।।
पीछे रहने का भय भी, कभी जीत की अभिलाषा,
दौड़ छोड़ दे, नए तौर से, कर जीने की आशा ।।-
घड़ियां इंतेज़ार की बेमियादी हो गई !
रात आधी हो गई, उम्मीद आधी हो गई ...
बुदबुदाने भी लगा, दहलीज़ पे रखा दीया !
आओगे तुम कब पिया, आओगे तुम कब पिया ?
लौ की भी हर हद तलक काला रंग चढ़ता गया
आधी खुली आंखों तले कालापन बढ़ता गया !
राख हम हो जाएंगे , तेरे आने तक पिया !
आओगे तुम कब पिया, आओगे तुम कब पिया?
राख रातें, थकी आंखें,लौ की हद होंगी गवाह
इश्क़ का रंग श्वेत होगा, सब्र का पर होता स्याह !
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(मेरे गाँव का दृश्य)
नव वर्ष की शुभकामना!
फल फूल से बगिया सजी,
खेतो में पक गई बालियां,
मेले लगें, करतब करें,
बच्चे बजाते तालियां ।
जड़-चेतना में हर्ष है
गदगद हुई धरती हरी
पथ पर खड़े सज के तरु,
स्वागत की आई है घड़ी!
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हम जो गीत गाते थे वक़्त ने क्यों वो गुनगुनाया नहीं ?
हँसता हूँ मगर मैं आज भी अरसे से मुस्कुराया नहीं !
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