फिर तेरी तलब उठी है आज दिल में मेरे
तू एक नशा है, तेरे बिना गुज़ारा मुश्किल-
लम्हा-लम्हा वक़्त गुज़रता कतरा-कतरा जीवन है।
एक उदासी की चादर है चिरनिद्रा में ये मन है।
लेखा जोखा है कर्मों का किसी से कोई गिला नहीं
जिसे शिकायत मुझ से न हो अब तक ऐसा मिला नहीं
समय समय पर छूटे है सब रिश्ते नाते संगी साथी
घर सुना है सुना है मन बिना तेल के जैसे बाती
रोज सुबह ओर शाम का होना समय का चक्र बराबर है
अपना हिस्सा मिलता सबको आदर कहीं, निरादर है
किसी के हिस्से ख़ुशी है आई कुछ को मिली मदहोशी है
मेरे हिस्से बड़ी है दौलत कहते जिसे खामोशी हैं-
बस यही दूरियां तो मुक्कमल करनी है मुझे
लबों पर लब हो इतनी दूरी तय करनी है मुझे-
एक तेरी फिक्र में हरदम बेचैन रहता हूँ
तू ही ख्यालों में है, दिन रैन कहता हूँ।।-
तन के रथ में हो मन का डोर
रमे रहे सेवा में माँगूँ न कुछ औऱ
दुःख हो सुख हो रहें साथ साथ
प्रेम से सब बोलिये जय जगन्नाथ-
जिस्म होता तो लौटा देता उसको पल भर में
सौदा रूह से रूह का था ये जुदा हो न सका।-
तुझे कोई इल्ज़ाम मैं दूँ भी तो कैसे
आखिर तू मेरा प्यार है, मैं तेरा नहीं-