किस्सा मेरी थी, कहानी किसी और की हो तुम,
आइना देखा मैने हंसी किसी और की हो तुम,
जमीं, आसमां, चांद, तारे वैसे जीतना भी न था,
हार हुई जब पता चला किसी और की हो तुम,
कुछ खास नहीं बदला घर में भी सब अच्छा है,
हां, मां चौंक गई जब कहा किसी और की हो तुम,
तेरे खत भी जला दिए और तुम्हे भुला भी चुका,
बात फिर क्यों सताती है, किसी और की हो तुम,
मानता हूं पागल हूं तुम्हें जो ख़ुद में तलाशता हूं ,
दिल को यकीं कैसे दिलाऊं किसी और की हो तुम...!!-
A lil' lost A lil' found...!!
अब तो ले ही आओ गुजरा जमाना कोई,
न चिराग़ बाकी है, न रहा परवाना कोई,
अपना हाल मैं सुना दूं इक रात जागकर,
परे जो अपनों से मुझे मिले बेगाना कोई,
लाल जोड़े में वो गैर की लाज बन गई,
शहर में मर गया कहीं पे दो दिवाना कोई,
दास्तान तो दब गया किताबी पन्नों में कहीं,
मशहूर खूब हुआ पर मेरा खत पुराना कोई !-
हकीकत - ख़्वाब को उलझे हुए हालों में देखा है,
छत पर जब भी उसे भीगे हुए बालों में देखा है,
उसी से हू-ब-हू मिलती है क्यों सूरत तुम्हारी,
दिन - रात जिसे मैंने महज़ खयालों में देखा है,
परिंदे वो चहकते हैं शहर में शाम आने पर,
शम्स* जिसने उसके सुर्ख* से गालों में देखा है,
क्यों गैर के होने पर तेरे तकिए भिगाऊं मैं,
भरा 'पानी' भी मैंने 'जाम' के प्यालों में देखा है,
उसे न बेवफा लिखो 'केशव' अपनी कहानी में,
तुम्हारी तस्वीर मैंने उसकी रिसालों* में देखा है...!!
शम्स* - sun; सुर्ख* - Red; रिसालों - Magazines-
उसके शहर से आए हो, इतना महक रहे हो,
शराब पी है तुमने या यूं ही बहक रहे हो,
फ़िर ज़िद कर रहे दिल का खेल खेलने की,
तुम इन नौजवानों का अरसा सबक रहे हो,
सर्दियां क्या आई, रातें हसीं जान पड़ती हैं,
चाहत की आग लिए सीने में जो दहक रहे हो,
बात समझो 'केशव', अकेलापन आजादी नहीं है,
तुम बेवजह ही उसे अपनाने में झिझक रहे हो...!!
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उनसे इसलिए भी इश्क छुपाना पड़ेगा,
अगर इज़हार किया तो निभाना पड़ेगा,
हारना पसंद करूंगा मैं तुमसे ताउम्र,
तुमसे जीता, तो तुम्हे सताना पड़ेगा,
इश्क़ तो इबादत है,आज भी खुदा की,
आशिक़ ही झूठे हैं उसे बताना पड़ेगा,
वो कल से रूठी है, इक बोसे के वास्ते,
केशव, इश्क़ है तुम्हे तो जताना पड़ेगा..!!-
सता बेवजह ही मुझको ये बात रही है,
हमारे इश्क की गवाह तो चांदनी रात रही है,
उसके सुर्ख होठों पर तिश्नगी ठहरी है,
बरस बेवक्त जो बर्फ़ की बरसात रही है,
रात के ढ़ाई बजे भी नींद से जाग जाता हूं,
ख्वाब में भी उसके यादों की बारात रही है,
इंतज़ार में करवट बदली कितनी ही शामें,
खुनकी में भी महज़ रजाई की सौगात रही है,
हमने दिल भी फेंका सबसे ऊंचे छज्जे पर,
ये पत्थर हमेशा हमारे ही सिरात रही है...!!-
हमारे रिश्ते का बचा आखिरी पहचान हूं मैं,
कि वादे टूट रहे हैं बहुत परेशान हूं मैं,
ये रूप कौन सा फिर अपना लिया तुमने,
कितने रंग हैं तुम्हारे जिससे अंजान हूं मैं,
मैं भी भूल जाऊं तुमको यही मुनासिब होगा,
जिसे तुम छोड़ आए रस्ते, वो सामान हूं मैं,
वो बात भी जाना तुम्हे न याद आयेगी,
तुम कहते थे पहले की तुम्हारी जान हूं मैं,
तुम गुरूर मत समझना, मैं सच बताता हुं,
खुदा का आखिरी ही तुमपे एहसान हूं मैं...!!-