...मानो खत्म यूं हुआ
"जैसे"
सबकुछ शुरू हो रहा।-
...आजमाएं जाते है
"जुगनू"
चारदीवारी में हर रोज।
चले ही आते है
"फ़रिश्ते"
ये रातें को ओढ़कर।
-
..कोई कहता हैं,
कि दिल
चोट का फ़साद
है “मुर्शीद”
कोई कहता है,
‘कलेजे’
में दर्द रहता है।
-
..मुर्शीद
पहले घरों में
कई
कमरे हुआ
करते थे।
अब कमरे में
कई घर
होने
लगे है।-
....साहेब
भीड़ से निकलिए,
अब होश में आइए।
मिलाइए नजर
“कमली”
खुद के जज़्बात से।-
तमन्नाओं में उलझाया गया हूं,
खिलौने दे कर बहलाया गया हूं।
–@शाह अजीमाबादी
रोज बुनता हूं ख्वाब रोज टूट जाता है
कमली कितनी बार आजमाया गया हूं।
–@कमली
सुपुर्दें ख़ाक ही करना था मुझको
तो फिर काहे को नहलाया गया हूं।
–@हाफिज जालंधरी
-
...किसी की
गुजरती नहीं है काली रात,
किसी की
जाता नहीं दिन तेरी दावेदारी में,
“कमली” तू बता
और किस–किस को
लगा रक्खी है इसी उम्मीदवारी में।
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..सर्द रात भर
फिर हिज्र का मौसम
जिस को आना था,
आया।
लेकिन “कमली"
वो ख़्वाब नहीं आया।
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ठठुरती सर्द के गलीचे खोलिए “चराग–ए–बदन"
फिर वही शहर से इक आलम पनाह आयें है।
–@कमली-