Kumar   (✍ Kumar)
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Joined 12 August 2020


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Joined 12 August 2020
27 MAR AT 0:35

तुम्हारे साथ बीता जो,
हर इक क्षण याद हैं मुझको
वो ऋतुए पतझड़ वाली और ,
वो सावन याद हैं मुझको
मुझे अक्सर बुलाती हैं
वो छत वो चाँदनी राते
वो अंधियारा अमावस का
वो पूनम याद हैं मुझको //1//










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31 OCT 2024 AT 16:52



नरमी थोड़ी मिट्टी की
शीतलता लेकर पानी की
सहकर थपेड़े चाको पर
कुम्हारों के हाथो पर
संघर्षो में भी जिया हूँ मै
मिट्टी का नन्हा दीया हूँ मैं ॥






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3 AUG 2022 AT 23:36

तुम तो समझते
मेरी भावनाओं की गहराइयां
मेरी मौन अभिव्यक्तियां
मेरी अस्पष्ट किन्तु सहज स्वीकृतियां
तुम तो समझते
आशाओ के संसार तुम ही थे
जीवन के आधार तुम ही थे
निजता के पर्याय तुम ही और
लोको का व्यवहार तुम्ही थे
भावो के चित्रो को दर्शाती
मुख मंडल की वे रेखाएं
करुणा वेदना और अहं की शैलियां
तुम तो समझते
तुम तो समझते मेरी मौन अभिव्यक्तियां

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19 DEC 2020 AT 0:21




मैं देख पाता तुम्हें,
मगर अंधकार अधिक था
मेरे सर पे जरूरतों का
कुछ भार अधिक था
तुम खड़ी थी एक ओर
भविष्य भी खड़ा था
कुछ सपने थे जिनको
अपनो ने गड़ा था
जीवन पे अपनो का उपकार अधिक था
मैं देख पाता तुम्हे मगर अंधकार अधिक था




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2 OCT 2020 AT 11:43


भीष्म वध
(भाग -1)
अनुशीर्षक में पढ़े

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27 SEP 2020 AT 0:04

बाकी है अभी और इम्तिहान बाकी है
जिंदगी तेरे और कितने अहसान बाकी है

पत्थर सा दिल हो चला,गमो की बारिशो से
क़ुदरत बता कितने आसमान बाकी है

मुद्दते हुई सुस्ताये,चले जा रहे है ज़मीं
ऐ ख़ुदा बता तेरे कितने जहांन बाकी है

आँसूओ का सैलाब है कि थमता नही है
ऐं साहिल बता कितने तूफान बाकी है

दिल तो है बेचैन परिंदा हैं कभी रुकता नही
ऐ जा तू बता तेरी कितनी उड़ान बाकी है


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18 AUG 2020 AT 14:42


बड़ी बेरंग हैं ,इश्क़ की दुनिया तेरी
,दुनिया को तेरी रंगीन बनाते हैं।

निगाहों से कत्ल अब आम हो चला
गुनाहों को थोड़ा संगीन बनाते हैं।

शहद से ज्यादा मीठे है होंठ तेरे
लबो को चूमकर नमकीन बनाते है

खुश बड़ी है दुनिया हमें जिंदा देखकर
मौत से अपनी माहौल गमगीन बनाते हैं।




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30 AUG 2021 AT 15:10


जग की व्यापकता से लेकर, सूक्ष्म कण तक जो समा हैं
देह की दहलीज छूकर, सुप्त मन तक जो रमा हैं
मुझ को रचा मुझ में बसा मुझसे न कोई भिन्नता हैं
मै देह हूँ निष्प्राण इक और कृष्ण मेरी आत्मा हैं

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19 DEC 2020 AT 23:27

जीवन मेरा अब तक
बस नाम का ही था
हाथों में मय का प्याला
बस शाम का ही था
जो आई रात सितारों की
सितारे बदल गए
नजरें मिली जो सच से
नजारे बदल गए
बटोर के अब आँसू
फिर से सँवरना है
दिल कह रहा हैं अब तो
कुछ कर गुज़रना है ।

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18 DEC 2020 AT 21:25

सब कुछ तो बदल गया पर
एक आदत नहीं बदलती
खोके तुम्हें पाने की
फिर से चाहत नहीं बदलती

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