कभी आंखे बंद करके, कुछ लम्हे कैद कर लिए ।
तो कभी आंखे खोलकर, खुद को आजाद कर दिया ।।-
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अब ये कुछ किस्से ज़माने में रहने दो,
किताबो की बातें किताबों में रहने दो ।
यू तो अकेला ही चला था सफर में,
पर अब वो रास्ते की बात मैखाने में रहने दो ।
किताबो की बातें किताबों में रहने दो ।।
सुर्ख होठ, नर्म लफ्ज़, नशीली आंखें और लहज़ा अदब का,
ये किस्से भी अब सिराहने रहने दो ।
किताबो की बातें किताबों में रहने दो ।।-
जिन्हे ईश्क हो, वो आकर जताएं,
जिन्हे ईश्क हो, वो आकर जताएं,
आखिर हर बार अपना घर, हम खुद ही क्यों जलाएं !!-
संसार किराए का,
घर किराए का,
रिश्ते किराए के,
देह किराए का,
फिर अपना कौन ??-
कभी हमने आखें बंद करके, किसी को कैद कर लिया ।
और कभी हमने आखें बंद करके, किसी को आज़ाद कर दिया ।।-
कल्पनाओं की कल्प में,
विकल्प की तालाश में,
जिंदगी हर बार बदल गई,
एक और विकल्प के आभाष में ।।-
कभी कभी लगता है, जिंदगी तो जिया पर जी नही पाया,
फिर लगता है, इतने दिनो तक तो जिया, ये क्या कम थे??-
यकीन मानो,
तुम्हारे झुमके और हमारी कहानी वही रह गए,
और ये वक्त चल गया ।।-
क्यों ख्वाईश करते हो बड़े पलंग और मखमली बिस्तर की, जब जाना तुम्हे बांस की खाट और फूस की बस्तर पे ही है । साथ तो तुम अपना बदन भी नहीं ले जा सकोगे, फिर अपना किसको कहोगे, और तुम कौन? तुम्हारी पहचान क्या? आन क्या? शान क्या? जवानी क्या? बुढ़ापा क्या? खोया क्या? पाया क्या? अपना क्या? पराया क्या?? और हां तुम्हारी वो मूछों वाली शान का क्या? ...... सब माया... सब मोह.. क्या हम ? क्या तुम??
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Shredding and bubbling around the thoughts,
over n over again,
grinding n crushing on the same stone,
seems,
as if I am no one,
at least not the one, you thought of,
or the one I met before-