क्यों ख्वाईश करते हो बड़े पलंग और मखमली बिस्तर की, जब जाना तुम्हे बांस की खाट और फूस की बस्तर पे ही है । साथ तो तुम अपना बदन भी नहीं ले जा सकोगे, फिर अपना किसको कहोगे, और तुम कौन? तुम्हारी पहचान क्या? आन क्या? शान क्या? जवानी क्या? बुढ़ापा क्या? खोया क्या? पाया क्या? अपना क्या? पराया क्या?? और हां तुम्हारी वो मूछों वाली शान का क्या? ...... सब माया... सब मोह.. क्या हम ? क्या तुम??
Shredding and bubbling around the thoughts, over n over again, grinding n crushing on the same stone, seems, as if I am no one, at least not the one, you thought of, or the one I met before