Kumar Ambuj Patel   (`Sahaj')
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Joined 23 September 2019


Joined 23 September 2019
4 APR AT 8:25

न जानें कौन सी पुरवाई है
कि हर तरफ़ तन्हाई है
कोई परेशां है बेवफ़ाई से
किसी को वफ़ा रास न आई है

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25 MAR AT 16:23

जिसमें होली का रंग भी है ....
रंग है उमंगों का, प्यार के रंगों का
जीवन की खुशहाली का...
रंग है; भांग वाली प्याली का,
गुझिया वाली थाली का,
फाग वाले ढ़ोल का, सुरों के संग बोल का.....
रंग है, भाईचारे का
फागुन की बहारों का.
भूल के मतभेद गले लगने का,
ताल से ताल मिलाके चलने का,
रंग है अनेक जिंदगी के.........

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22 MAR AT 20:19

यदि खुशी मिलती है तुम्हें, मेरे न होने से
तो अच्छा है;
चला जाता हूं मैं, कहीं दूर......
जहाँ से देखुंगा तुम्हें हँसता हुआ ।
कोसुंगा ख़ुद को;
जो अड़चन बना था अब तक तुम्हारी खुशियों में,
तसल्ली देते हुए,
थपथपाऊंगा अपनी पीठ, कि देर से ही सही
किसी की मुस्कान की वजह तो बना.......


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7 MAR AT 12:45

नये तमाशो के लिए पुराने छोड़ आया हूं,
दिल में रहने वाले घराने छोड़ आया हूं ।

मुझे मालूम है एक दिन अकेले ही जलना है
कई सच छुपा के मैं बहाने छोड़ आया हूं ।






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27 JAN AT 22:29

वही शख़्स, वही अक्स, वही मुस्कान थी
जगह नई थी, पुरानी पहचान थी....
पास होकर भी पास न थे हम,
दोपहर में मिले, हो गई शाम थी...
उसकी आंखों में वही पुरानी उम्मीद
उसकी सहेली पहले जैसे ही नादान थी....
बिन लफ्जों; एक दूजे को पढ़ लिया हमने
वही आँखे थी, बस बनीं अनजान थी....
मैं बैठा रहा, पेमेंट उसने किया
चाइनीज डिश थी, क्या कमाल थी....
’आँचल’ का सुकूं; कहीं और नही ‘सहज’
थीं चाय की चुस्कियाँ और मीठी मुस्कान थी...







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26 JAN AT 22:16

न अपने, न सपने, न हसरत, न मोहब्बत,
न वजू, न गुफ्तगू और न ही इबादत काम आई;
देखने वाले देखते रहे केवल तमाशीन बनके मुझे,
काम आई तो इक चैल और कुछ लकड़ियां काम आई..

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11 JAN AT 12:56

ना जानें कब - कौन सी इबारत लिखी जायेगी
लिखी जायेगी सफलता या शहादत लिखी जायेगी..
कलम की स्याही भी खामोश होने को है,
क्या बची स्याही से इबादत लिखी जायेगी..
ना जानें कब मंजूर होगी इक फ़रियाद,
होगी तो कब, नहीं हुई तो चाहत लिखी जायेगी..
लक्ष्य भेदन के लिए तो अर्जुन बनना पड़ेगा,
उसे भेद कर ही चेहरे की मुस्कुराहट लिखी जायेगी..


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1 JAN AT 4:04

नए वर्ष २०२४ की ठंडी सुबह,,
लेकर आई नई उम्मीदें, नया विश्वास
नया हौसला, नया हर्षोल्लास ।
नए रंग में रंग कर आई,
करने साकार सभी के सपनों को
छूट गया था जो कुछ पीछे,
पुनः उसे एकजुट करने को।
लेकर आशीर्वाद बड़ो का
करना है दिन की शुरुआत हमें,
परिस्थितियों हो कैसी भी,,
बस रहना है एकसाथ हमें ।






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31 DEC 2023 AT 18:23

कई सबक दिए वर्ष २०२३ ने...
कई रिश्ते,,
कुछ छूटे; तो, कुछ तार हुए, कुछ गद्दार हुए...
कई रंग दिखे,
कुछ संग दिखे तो कुछ रंज दिखे ...
कई पल,,
कुछ पल खास थे, कुछ उदास थे
कुछ तो स्वप्न थे, कुछ एहसास थे...
कई ख़बर,,
कुछ खबर ठीक थी, कुछ ने छीनी नींद थी...
कई वादे,,
कुछ वादे हुए पूरे , कुछ रहे अधूरे,,
कई उम्मीद,,
कुछ में आस दिखी, तो कुछ में राख दिखी...
अंततः सफ़र,,
कुछ चढ़ाव था, कुछ उतार था,
सबक बहुत थे, अंततः अच्छा पड़ाव था....









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12 DEC 2023 AT 9:19

कुछ

कुछ लोगों की हस्ती है,
मेरी इकलौती बस्ती है,
जाने वाले चले गए, मेरा जाना बाकी है
कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है।
जब तक था सब अपने थे
अब अपना कौन समझता है
कुछ! खोखले रिश्तों में, झूठा मुस्काना बाकी है
कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है ।
कौन यहां ? कब किसका था?
सब अपने हैं और अपनों के,
जीवन का है रंग कहां? बिन तृष्णा और सपनों के,
उस कोहरे को छटने में, किरणों का आना बाकी है
कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है।।


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