Kumar 007   (Kumar)
190 Followers · 212 Following

read more
Joined 17 March 2019


read more
Joined 17 March 2019
26 AUG 2022 AT 11:03

लोगों को बेवजह गलतफहमी हो गई
वो मुझे हस के नही देख के हस रही थीं

-


7 FEB 2022 AT 22:50

मेरे दिल का गुलाब मेने उसको दे दिया
बेखबर उसने होके उस पर पैर रख दिया— % &

-


7 FEB 2022 AT 1:15

तेरे होंठों की शोखियां किसी गुलाब से कम नहीं
तेरा पलकें झपका देना किसी जवाब से कम नहीं
— % &

-


5 FEB 2022 AT 16:43

शब्द ही अर्थ बनते हैं
शब्द ही अनर्थ बनते हैं

शहद लगते हैं गर हो अच्छे
बुरे हो तो फिर ज़हर बनते हैं

ज़ज़्बातों को समेटे हुये
बरस जाए तो क़हर बनते हैं

सागर जैसी असीम शांति
उमड़ जाये तो लहर बनते हैं।

कभी बिखरे लगते हैं मगर सिमटे
तो भावनाओं का शहर बनते हैं।
— % &

-


5 FEB 2022 AT 12:52

उदासी मे लिपट कर रह गयी है इक रात
बस कुछ देर की और रह गयी है इक रात

तुम्हारा इन्तज़ार मैं ही कब तलक करता
सुबह का आया था अब हो गयी है रात

कुछ कहना है मुझे जो तुमने सुना नहीं
अधूरी सी जुबां पर रह गयी है इक बात

बेफिक्र होकर सोया रहा मैं "राही"
बेखबर था अपनों से हो जायेगी मात



-


4 FEB 2022 AT 17:52

कभी आत्मबल से भरपूर ज़िन्दगी
कभी मारे डर के छुप जाती ज़िन्दगी
पतंगों सी पंख फैलाती आसमाँ में
कभी जमीं पे ठहर जाती ये ज़िन्दग़ी

हौले से पैर उठाती ये ज़िन्दग़ी
कभी सरपट दौड़ जाती ये ज़िन्दग़ी
कभी ये सुस्ताती है शज़र की छाँव में
कभी धूप में मचल जाती ये ज़िन्दग़ी

कभी चुपके से आ जाती ये ज़िन्दग़ी
हवा बनकर गुजर जाती ये ज़िन्दग़ी
कभी हौले से कानों में फुसफुसाती हैं
कभी अंधेरे में गुम हो जाती ज़िन्दगी— % &

-


3 FEB 2022 AT 19:03

बड़े हुनरमंद हो क्या क्या कर लेते हो
जज्बातो से भी अच्छे से खेल लेते हो— % &

-


3 FEB 2022 AT 18:52

मेरी हर खामोशी मे तेरी आवाज होती है
पास ना हो तुम मेरे फिर भी पास होती है— % &

-


10 DEC 2021 AT 22:28

ये ज़िन्दग़ी
कभी आत्मबल से भरपूर ज़िन्दगी
कभी मारे डर के छुप जाती ज़िन्दगी
पतंगों सी पंख फैलाती आसमाँ में
कभी जमीं पे ठहर जाती ये ज़िन्दग़ी

हौले से पैर उठाती ये ज़िन्दग़ी
कभी सरपट दौड़ जाती ये ज़िन्दग़ी
कभी ये सुस्ताती है शज़र की छाँव में
कभी धूप में मचल जाती ये ज़िन्दग़ी

कभी चुपके से आ जाती ये ज़िन्दग़ी
हवा बनकर गुजर जाती ये ज़िन्दग़ी
कभी हौले से कानों में फुसफुसाती हैं
कभी अंधेरे में गुम हो जाती ज़िन्दगी

लोगों से निवाला छिन लेती ये ज़िन्दग़ी
कभी हाथों में कटोरा थमाती ये ज़िन्दग़ी
लोगों के दिलों को कुचलती रहती है
कभी उन पर मरहम लगाती ये ज़िन्दग़ी

दरख्‍त के पत्ते सी हरी भरी ये ज़िन्दग़ी
कभी पतझड़ बन के आती ये ज़िन्दग़ी
कभी खुशियों में मुस्कराती दिखती हैं
कभी ग़मों में बौखला जाती ये ज़िन्दग़ी

तितलियों सी रंग बिरंगी ये ज़िन्दग़ी
कभी बदरंग सी लगती ये ज़िन्दग़ी
आइने तो सिर्फ सूरत ही दिखाता हैं
नहीं दिखाता की बदल गयी है ज़िन्दगी

-


11 JUL 2021 AT 11:32

तुम को वश में करेंगी
और संपूर्ण जकड़ लेंगी
लेकिन तोड़ देनी पड़ेंगी
और बच निकालना होगा
ऐसी संकीर्णता विचारों से
त्यागना होगा वो कल्पित
कवच जो मुक्ति में बाधक
बनकर राह का रोड़ा बना है
तुम चुन लेना वो रास्ता जो
पाबंदियों से परे हैं असीमित
जो जाता हैं अंत विहीन
उलझनों से मुक्त शांति की ओर।।

-


Fetching Kumar 007 Quotes