कुमार अविनाश   (जख़्मी_कलम)
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🖤💛A soul trapped in Human body
Whatsapp- 7004395846
Joined 4 January 2019


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कुछ दोस्त…
ज़िंदगी में यूँ आते हैं,
जैसे बरसात में पहली ठंडी हवा…
दिल को सुकून दे जाएँ,
और चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाएँ।

आप भी वैसी ही हैं…
जिनकी बातें बोरिंग दिनों को भी
मज़ेदार बना देती हैं,
और जिनकी हंसी सुनकर
ग़म भी कोने में बैठ जाते हैं।

आज आपका दिन है…
तो दुआ है...
आपकी एनर्जी सूरज की पहली किरण जैसी चमकदार रहे,
और आपकी मुस्कान वसंत की पहली हवा जैसी ताज़गी देती रहे।

रहें वैसी ही ...
थोड़ी सी शरारती,
थोड़ी सी जादुई,
और पूरी की पूरी प्यारी।

जन्मदिन मुबारक हो, दोस्त! 🎂✨

-



साथ हमारा जब तक है,
हर पल मधुरिम सा होता है।
तेरी मुस्कान की रौशनी से,
जीवन आलोकित होता है।

तेरे समीप जो आता हूँ,
मन में सरसता छा जाती है।
तेरे स्पर्श की ऊष्मा से,
हर पीड़ा दूर हो जाती है।

तेरे करों का कोमल बंधन,
जैसे वसंत उतर आए।
तेरी दृष्टि की निर्मल छाया,
मन में सुख-सागर भर जाए।

साथ हमारा जब तक है,
हर दिन फूलों सा महकेगा।
तेरे आलिंगन की उष्मा में,
मेरा जीवन बस बहकेगा।

-



चिर प्रतीक्षा के पथ पर चलते,
नयन निरंतर स्वप्न संजोते।
शब्द रहित सब संवाद हमारे,
मन ही मन अनुराग संजोते।

स्मृतियों की वीणा पर ही,
राग अधूरे छेड़ते हैं।
हर बार मोहब्बत करते हैं,
हर बार तड़पते हैं।

हास-आशा के पुष्प खिले थे,
निष्ठुर पवन उन्हें छीन गया।
नेह-प्रदीप जो प्रज्वलित था,
विरह-वायु उसे बीन गया।

हमने पलकों में चित्र रचे,
पर वे चित्र अधूरे हैं।
हर बार मोहब्बत करते हैं,
हर बार तड़पते हैं।

शब्द नहीं थे, चाह बहुत थी,
मन के भाव विकल हो उठे।
नयन-कुंज में जल भर आया,
और स्वप्न कमल सब रो उठे।

प्रिय मिलन की मृगतृष्णा में,
हम निःशब्द समर्पित हैं।
हर बार मोहब्बत करते हैं,
हर बार तड़पते हैं।

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"मैं मिट्टी हूँ"

मैं मिट्टी हूँ — ना दिखूं खास,
पर मेरे बिना अधूरी है हर साँस।

राजा भी मुझसे जन्म लेता,
सूरज भी मुझपे सर धुन लेता।

तू महल बना ले सोने का,
आख़िर लौटेगा गोद में मेरे ही।
मैं चुपचाप सब सह जाती हूँ,
पर बिन मेरे, तू कुछ भी नहीं।

मेरे सीने से फूटे अनाज,
तू रोटी कह के खा जाता है।
मैं भीगूँ तो सौंधी लगती,
तू खुशबू में बह जाता है।

मत माप मुझे वजन से तू,
मैं वजूद की देवी हूँ,
कहीं हल की धार में सजती,
कहीं वीरों की चिताओं में जली हूँ।

मैं मिट्टी हूँ — नींव भी मेरी, आख़िरी घर भी मेरा।
जो मुझे छोटा समझे, वो खुद से बेख़बर है सारा।

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वो मौसम मस्तानी सी
बातें उनकी रूहानी सी 
हम बेफिक्र थे,
बिल्कुल निडर थे,
साथ उनके हाथ थामे,
चल पड़े हम दो दीवाने,
चलते चलते जो हो गयी शाम,
थी शाम वो दीवानी सी,
राहें भी अंजानी सी.....

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मौज में निकल पड़ा हूँ मैं
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अपने मन के जज्बातों से हर रोज़ लड़ा हूँ मैं
फिसल गया था, अब तो थोड़ा सम्भल पड़ा हूँ मैं,
सख्त से इन रास्तों पर, पिघल पड़ा हूँ मैं,
वक्त की खोज में निकल पड़ा हूँ मैं
कि अपनी मौज में निकल पड़ा हूँ मैं ।।

रुकना नही है, अब तो आगे बढ़ पड़ा हूँ मैं,
बाधाएं तो आयेंगी ही पर चट्टान सा खड़ा हूँ मैं,
नई सी ऊमँग और सोच लिए चल पड़ा हूँ मैं,
वक्त की खोज में निकल पड़ा हूँ मैं
कि अपनी मौज में निकल पड़ा हूँ मैं ।।

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.....

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बोलो अब तो! मेरे साथ आओगे क्या ?
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मैने ढूंढ लिया है एक ठिकाना
जहाँ बस जाए हम दोनों का आशियाना
तुम फिर से बहाने बनाओगे क्या ?
बोलो अब तो! मेरे साथ आओगे क्या ?

ये चुप्पी तुम्हारी जंचती नही तुम्हारे चेहरे पर
देर हो जाएगी, हम थोड़ी देर और ठहरे अगर
यूँ ख़ामोश रह कर फिर से मुझे रुलाओगे क्या ?
बोलो अब तो! मेरे साथ आओगे क्या ?

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यादों की बारात चलो,
लेकर अपने जज़्बात चलो
अपनी कहो और कहते रहो,
थोड़े मेरे भी हालात सुनो
थोड़ी दूर तो साथ चलो ।।

सुन लेंगे वो भी अफसाना,
टूटा दिल हुआ बेगाना,
बेगानों की इस बस्ती में,
सिसकते मेरे अल्फ़ाज़ सुनो,
थोड़ी दूर तो साथ चलो ।।

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हाँ, कई बुरी आदते है मुझमें,
मगर सिर्फ तेरी चाहते हैं मुझमें ।
इस मोहब्बत का बता तुझे क्या सबूत दूँ,
साँस तू ले रही है और आहटे है मुझमें ।।

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