हां!
मैं घर आ सकता हूं
मैं घर ही आना चाहता हूं
जो घर को घर करे
वो हमसफ़र तो हो।
हां!
मैं घर लौटकर लेटना चाहूंगा
अपने उसी पुराने बिस्तर
जो मेरी थकान को थका सके
वो हमसफ़र-हमबिस्तर तो हो।
नहीं!
मैं पूरा नहीं हूं
मैं अधूरा-अनसुना हूं
जो अधूरे को करे पूरा, सुने पूरा
वो हमसाया-हमसफ़र तो हो।
हां!
मैं घर आना चाहूंगा
प्रेम-गीत गुनगुनाना चाहूंगा
जो मेरी वापसी को हो बेकरार
वो निगाहे-ए-यार ,
वो हमसफ़र तो हो
-अभिनंदन कुमार
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नाचीज मैं ; नाजिर की नजर का नजरिया हूँ।"
कहीं ये दफ्न होती है
कहीं हो राख जाती है
यही इस देह का दस्तूर
निकल जब सांस जाती है।
मगर इंसान मरता है
नहीं इंसानियत मरती
ना इसकि बास जाती है
ना इसकि साख जाती है
यही इंसानियत का नूर
निकल जब सांस जाती है।
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"मेरे ज्ञान के रक्षक, अज्ञान के भक्षक
मेरे हर शिखर के शीर्ष के शीर्षक
है जिनको,
नित नतमस्तक ये मेरा शीश
वो कोई नहीं मेरे शुभाशीष
मेरे मां का आंचल; मेरे गुरु का आशीष।"
- अभिनंदन कुमार
(शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं)
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सपनों को साकार करेंगे
धीरज को ही धार करेंगे
जब तक जां है रार करेंगे
जीते जी क्यूं हार करेंगे।
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निज भाषा में नाद गढ़ें
तय मंजिल जब तक मस्तक हो
उनकी भाषा में संवाद गढ़ें
जो चाहत दिल तक दस्तक हो।
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यूं तो हर दिन अपने आप में कुछ खास होता है
पर उस दिन मां को मां होने का एहसास होता है ।
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दिल को ये यकीन था कि हां कोई अपना है
दोनों टूटे जब हुआ इल्म ये महज सपना है
इससे पहले कि कोई कहता अब तुम्हें सम्हलना है
यम ने किया विवश अब तुम्हें यहां क्यूं रहना है ?
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तुम क्या मुझको जीवन दोगे
सब देख रहा है ऊपरवाला
दोषी को घर में कर दो
और निर्दोषी को बेघर कर दो
तुम कहते हो गलती हो गई
भईया हमको माफ़ी कर दो
वैसे तो कमजोर नहीं हूं
पर जालिम जितना मज़बूत नहीं
पर अपने घर तक ना जा पाऊं
अभी जिंदा हूं ताबूत नहीं।-
पीठ पे डंडा पांव में छाला
चार दिनों से नहीं निवाला
वो देखो लाश पड़ी है
और मैं भी हूं मरनेवाला
मेरा क्या है मज़दूर हूं मैं
मैं भूख-प्यास में पलनेवाला
सदियों से यूं जीनेवाला
पर चंद मास के भूखे बाला को
मैं कैसे समझाऊं ताला
जब वो मुझसे बिलख के मांगे
पापा कहां है मेरे दूध का प्याला ?-
बिन मजदूरी मैं खाऊं
ये मेरा अधिकार नहीं
हरगिज़ मुझको स्वीकार नहीं
बिन मजदूरी तुम मुझे खिलाओ
क्या ये मेरे स्वाभिमान को
दुत्कार नहीं ?
प्रांगंड में तुम्हारे पांव रखूं तो
तुम कहते अछूत नहीं
क्या है जगत में निर्माण कोई
जो है मज़दूर से छूत नहीं ?-