गाँधीजी केसाथ यह अजीब विडंबना आज तक रही है कि जिस देश ने उनको बापू कहा, उसी अपनेदेश ने
सबसे कम पढ़ा है। इनके बारे में सबसे कम जानना चाहा था। हरैी पॉटर और चेतन भगत को दिन-रात एक करके
पढ़नेवाली पीढ़ी ने कभी गाँधीजी के लिए समय नही निकाला और गाँधीजी जैसे और भी कई लोगों के बारे में
उनकी जानकारी केवल पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक-दुसरे से सुने किस्से कहानियां के सहारे ही थी और उनकी सारी धारणाएँ
भी इसी पर आधारित होती थी! हिंदुस्तान मे लगभग हर साक्षर, पढ़ा लिखा टाइप आदमी गाँधीजी को पाकिस्तान
के बनने का शाश्वत कारण मानता था, और यह ऐतिहासिक ज्ञान खूब चलन में है। यह अलग बात थी कि
उनमें से कुछ लोग सहानुभूित रखते हैं और कुछ तो सीधे नफरत करते हैं। इस देश ने जीतना
मार्क्स को पढ़ा, समझा और अपने में गूँथा-ठू्ंसा, उतना अगर गाँधीजी को पढ़ा-समझा होता तो शायद पिढीयो का
सबक कुछ और होता।
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