#हमको_आदत_हो_जाए
तेरे शहर गली के कोने में, मेरी एक इमारत खो जाए ।
बस एक तेरी ही चाहत में, कई इश्क शहादत हो जाए ।।
इतने दिन भी रहो दूर मत, तुम अपने इस ठाकुर से,,
कि तेरे अब न होने की, हमको आदत हो जाए ।।
कवि कुलदीप सिंह सूर्यवंशी
खरेला महोबा बुंदेलखंड
-
जाओ गम्माज उनसे कह दो कि
सारी जागीर जश्न कर दी है
जीले जितनी भी बची हैं खुशिया... read more
उस पुराने समय में जो गाते थे हम । सामने भीड़ थी, मुस्कुराते थे हम ।।
भीड़ में एक चेहरे, को बस देखकर , एक चेहरा ही महफिल, में गाते थे हम ।।१
मंच पर गीत की, हर शुरुवात में । कुछ भी भूलूं अगर ,प्रेम की बात में ।
तुमको देखूं तो सब याद आता रहे । दिल ये पढ़ता रहे ,गुनगुनाता रहे ।।
एक चेहरे पे जो ,भूल जाते हैं सब , एक चेहरे पे कविता बनाते थे हम ।।
मंच पर उस समय जो गाते थे हम । सामने भीड़ थी मुस्कुराते थे हम।।२
एक समय हो चला, भीड़ छटती गयी । तालियों से भरी गूंज घटती गयी ।।
फिर भी कुछ तालियों की, ध्वनि थी अभी ।एक चेहरा लिए थे , नजर में सभी ।।
मंच के सामने अब वही शख्स थे , अपनी कविता से जिनको लुभाते थे हम ।।
मंच पर उस समय गुनगुनाते थे हम । सामने भीड़ थी गीत गाते थे हम ।।३
क्या समय आ गया ,मंच सूना हुआ । जख्म जो था सभी का वो दूना हुआ।।
एक चेहरा बिना लिख रहे हैं अभी । ख्वाब में दिख गए थे जो नैना कभी ।।
एक चेहरा जो हमसे बहुत दूर है , कल्पना में उसी को सुनाते है हम ।।४
गीत गाते थे हम , गीत गाते हैं हम ।
गीत गायेंगे हम , गुनगुनाएंगे हम ।।
कवि कुलदीप सिंह सूर्यवंशी
खरेला महोबा
बुंदेलखंड-
सब पहले चाहने वाले निकले ,
फिर अपनी राह बनाने निकले
जिसने ख्वाब दिखाए पहले
वो ही सपने मारने निकले-
#HOLI
रंग-ए-यारी ये होली मे अगर मिल जाये अच्छा हो |
पुराने सर चढ़े रंग अब , उतर जाये तो अच्छा हो ||
हाँ पिछली मेरी होली , इससे कुछ खास कम ना थी,
वही रंग फिर मेरे गालों , मे लग जाये तो अच्छा हो ||
#कवि_कुलदीप_सिंह_सूर्यवंशी-
ख्वाब में जिंदगी का मजा लेके हम
ख्वाब में उनके घर का पता लेके हम
धीरे धीरे से सपने जवां हो चले
कुछ पता ना चला कब रवां हो चले
ख्वाब ही ख्वाब में जिंदगी जी लिए
ख्वाब ही ख्वाब में सारे रस पी लिए
ख्वाब की हर कहानी हमें याद है
ख्वाब की हर निशानी हमें याद है
सोचते तो नहीं, हम रहे रात भर;
दिन में भी, कोई तस्वीर देखी नहीं
दिन में भी....कोई तस्वीर.....
फिर अजब सा, ये ख्वाब आज क्यों आ गया
फिर से उनको तो मेरी जरूरत नहीं
फिर से उन...को.. तो.. मेरी....
इस असल जिंदगी, से कहीं खूब है।
ख्वाब की, जिंदगी है बहुत खूब है
ख्वाब की...जिंदगी... है बहुत खूब है-
होता है
कैसे बताएं कि क्या होता है
वो जो कहानी सुनाता है दिन भर मस्ती की
वो खुद की कहानी में ही रातें रोता है-
भले ही सबकी कहानी अलग अलग होती है
पर सबका अंत एक जैसा ही होता है-
बस करके दिल्लगी
हम मिल गए धूल से
उस जरा सी भूल से
उस जरा सी भूल से-