Kuldeep Gaur   (दीप ✍️)
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Joined 30 October 2021


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11 DEC 2024 AT 3:03

आगे उस मोड़ पर इक गुब्बार उमड़ रहा है
वो साथी अब बीच राह छोड़ के मुड़ रहा है

हां उसे मुक्कमल हो रहा इक घना सज़र,
इस ओर..
मेरा सजाया सारा ही गुलिस्तां उजड़ रहा है

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31 MAR 2024 AT 0:51

दोष था की रहा आशिक़ी में बेबस मगर यूं लाचार नहीं था..
जिस सह से बिखेरा गया मैं बन्दा उतना तो बेकार नहीं था..

मुद्दतों बाद चाहत की के जंग छेड़ लूं जग से उसकी खातिर..
पर कमी रही की वो यार कमबख्त मेरा ईमानदार नहीं था..

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14 JAN 2023 AT 2:11

मै उदास बस्ती का अकेला वारिस,
उदास शख्सियत ही पहचान मेरी...!

मुस्कुराते चेहरे ज्यों मज़ेदार मंज़िलें,
गलियां मन की सारी है वीरान मेरी...!

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28 JUN 2022 AT 23:22

कहीं पत्थर, कहीं कंकड़ तो कभी सर पर पड़ती ईंटें है..
रक्त कण से डरता समूह और उसी के दामन पर छींटे है..


है अँधा कानून यहाँ अब सिर्फ मुगलिया तहज़ीब भरोसे..
है काफ़िर का "सर तन से जुदा" मगर 'शान्तिप्रिय' बैठे है..

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12 JUN 2022 AT 3:32

एक लम्हा ऐसा बीता जिस पर चंद मुस्कुराहटों का एहसान रहा..

खुदगर्ज़ चाहता तो रुक जाता, मगर वो सिर्फ़ एक मेहमान रहा..

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25 MAY 2022 AT 0:50

हर राहें भटके, कायल भी रहे अनेकों चेहरों के,
सिर्फ एक छवि रही, जो मेरे हृदय-तल में पाली गई...

सूनी सड़कें, बस सदमें बयां करती रही शहरों के,
मगर..
मेरी रौनकें, सारी बस उस एक गली में खंगाली गई...

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10 MAY 2022 AT 0:18

शांत था दिल पर आज एक टीस फिर उठी है वहीं..
सुना तो है मगर...

तुम्हें छू के देख लूँ, तुम सच में कहीं पत्थर तो नहीं..!

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25 APR 2022 AT 10:31

उम्मीदों का यह सूरज अपनी राहें नहीं चलता..
चंचल मन चाहता है ज्यूँ मनचाहा नहीं ढलता..

कुछ ख़्वाबों ने यूँ ही तबाही मचाई है ज़ेहन में,
हाल हमारा यूँ रहा कि संभाले नहीं संभलता...

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17 APR 2022 AT 22:53

अब उसे जकड़ रखा है समझदारियों ने,
वो सब से मिलकर भी कुछ कटा रहता है

उदासियों का सैलाब भी भरा हो हृदय ने,
मगर चेहरा मुस्कुराहटें लिए डटा रहता है!

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14 APR 2022 AT 23:45

यहाँ सही की कद्र नहीं करता कोई वैसे भी..
बदनामी के ही सही मगर मिले, पैसे कैसे भी..

घावों पर मलहम संग लगा दिए जाते थे कभी,
मगर...
भीगकर तेल में जल उठते है मुलायम रेशे भी...

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