आगे उस मोड़ पर इक गुब्बार उमड़ रहा है
वो साथी अब बीच राह छोड़ के मुड़ रहा है
हां उसे मुक्कमल हो रहा इक घना सज़र,
इस ओर..
मेरा सजाया सारा ही गुलिस्तां उजड़ रहा है-
दुनिया की इस बड़ी भीड़ में कहाँ उन्हें दिख रहे है.... read more
दोष था की रहा आशिक़ी में बेबस मगर यूं लाचार नहीं था..
जिस सह से बिखेरा गया मैं बन्दा उतना तो बेकार नहीं था..
मुद्दतों बाद चाहत की के जंग छेड़ लूं जग से उसकी खातिर..
पर कमी रही की वो यार कमबख्त मेरा ईमानदार नहीं था..-
मै उदास बस्ती का अकेला वारिस,
उदास शख्सियत ही पहचान मेरी...!
मुस्कुराते चेहरे ज्यों मज़ेदार मंज़िलें,
गलियां मन की सारी है वीरान मेरी...!-
कहीं पत्थर, कहीं कंकड़ तो कभी सर पर पड़ती ईंटें है..
रक्त कण से डरता समूह और उसी के दामन पर छींटे है..
है अँधा कानून यहाँ अब सिर्फ मुगलिया तहज़ीब भरोसे..
है काफ़िर का "सर तन से जुदा" मगर 'शान्तिप्रिय' बैठे है..
-
एक लम्हा ऐसा बीता जिस पर चंद मुस्कुराहटों का एहसान रहा..
खुदगर्ज़ चाहता तो रुक जाता, मगर वो सिर्फ़ एक मेहमान रहा..-
हर राहें भटके, कायल भी रहे अनेकों चेहरों के,
सिर्फ एक छवि रही, जो मेरे हृदय-तल में पाली गई...
सूनी सड़कें, बस सदमें बयां करती रही शहरों के,
मगर..
मेरी रौनकें, सारी बस उस एक गली में खंगाली गई...-
शांत था दिल पर आज एक टीस फिर उठी है वहीं..
सुना तो है मगर...
तुम्हें छू के देख लूँ, तुम सच में कहीं पत्थर तो नहीं..!-
उम्मीदों का यह सूरज अपनी राहें नहीं चलता..
चंचल मन चाहता है ज्यूँ मनचाहा नहीं ढलता..
कुछ ख़्वाबों ने यूँ ही तबाही मचाई है ज़ेहन में,
हाल हमारा यूँ रहा कि संभाले नहीं संभलता...-
अब उसे जकड़ रखा है समझदारियों ने,
वो सब से मिलकर भी कुछ कटा रहता है
उदासियों का सैलाब भी भरा हो हृदय ने,
मगर चेहरा मुस्कुराहटें लिए डटा रहता है!-
यहाँ सही की कद्र नहीं करता कोई वैसे भी..
बदनामी के ही सही मगर मिले, पैसे कैसे भी..
घावों पर मलहम संग लगा दिए जाते थे कभी,
मगर...
भीगकर तेल में जल उठते है मुलायम रेशे भी...-