kuhoo   (“ kuhoo “)
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Joined 31 August 2019


Joined 31 August 2019
29 APR AT 9:47

हादसों का‌ सफर है,,मोम दिल का पत्थर हो जाना,,,
कलंक जैसे कालिख लकिरो,,का मुकद्दर हो जाना,,

साहब ए यार को हिज़्र की तलब होने लगी थी,,,
जैसे सदियों की मोहब्बत का,,,मुख्तसर हो जाना,,

अब जो बिछड़े है,,तो विसाल की हसरत न रही,,
हमने देखा है,,दिल ए मकां का खंडहर हो जाना,,

अब हमारे मुकाबिल,,, ख्वाहिशो का‌ जीक्र न करें,,
अजाब होता,,हंसती आंखों का समंदर हो जाना,,

मतलबी लोगों को मुबारक हो फरेब की दुनिया,,
हमें रास आ‌ गया है,, इश्क मे मोतबर हो जाना,,,

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25 APR AT 12:13

कितने बरस से कैद थी ख़्वाहिशें,, खंडहर ए दिल के तहखाने में,,
आज माजी और मुस्तकबिल के दायरों से उसे आजाद कर दिया,,

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5 APR AT 10:59

चाहते वो‌ भी हद में,,
मोहब्बतें वो भी,,एतिहात से,,
अमान,,छोड़ो यार,, इश्क है,,
मुश्किल है,,बचना इसके हादसात से,,

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3 APR AT 0:36

आए हैं फिर वो,,,न‌ए वादो की किताब लेकर,,,
फिर से हमें,,, तिलिस्म -ए-मोहब्बत समझाने के लिए,,
हंसती मुस्कुराती ज़िन्दगी ,, खंडहर-ए-मकां बन गई,,
क्या कोई राह होती है,,कबर से घर वापस जाने के लिए,,

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10 MAR AT 14:01

सफर‌ तो‌ दोनो‌ ने‌‌ इक‌ साथ शुरू किया था,,,
धोखे की,, उम्र लम्बी थी,,
मोहब्बत ने बीच में ही दम तोड दीया,,,

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5 MAR AT 20:33

मूजमिंद होकर अहल-ए-दिल ने धड़कनों से बगावत की है,,,
उसकी तग़ाफ़ुल नजरों ने,,,मौसम-ए-मोहब्बत‌ को सर्द कर दिया,,,

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29 FEB AT 14:20

मख़मूर है सारे ख्वाब-औ-ख्याल मेरे,,,
रोको इन्हें,,कही कोई हादसा न हो जाए,,

अच्छा लगता है जब,,सब जोगन कहते हैं,,
अधुरा इश्क,,कही मुकम्मल दास्तां न हो जाए,

यार ने तो सर-ए-बाजार नीलाम किया,, हमें
मोहब्बत भी हमारी अब,,रूसवा न हो जाए,,

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19 FEB AT 10:58

जौक-ए-इश्क मे ज़िन्दगी तबाह करके देखो,,,
बेवफा यार से जरा,,निबाह करके देखो,,

मुखालफत करो,, जमाने के रस्मों-औ-रीवाजो से,,
काफ़िर बनो,,औ इश्क ए गुनाह करके देखो,,

पल दो पल में वो,, तन्हा छोड़ जाएगा तुम्हें,,
मेरी जां,शब-ए-हिज्र से,,निकाह करके देखो,

रूह से चिपका रहेगा ये मर्ज,, कोई काम न आएगा,,
अपने ही दर्द-ओ-गम पर,,वाह वाह करके देखो,,

जो चाहो राहत-ए-सुकून जां के‌ लिए,,इससे राबता न करना,,
जब‌ ये आवाज़ दे,,इसकी ओर,, तल्ख-निगाह करके देखो,,

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12 FEB AT 11:10

तहज़ीब-ए-मोहब्बत निभाया हमने,,
ख्यालों में भी तुझसे ही राबता रखा,,
रूह की बात क्या कहें,,मेरी जां,,
हमने तो,,
संगमरमरी बदन को भी अनछुआ रखा,,

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12 FEB AT 8:17

हाथ बढ़ाकर छु,, हमें
जिन्दा होने का एहसास करा,,
सांस बदन को आती नहीं
मुर्दा जिस्म को गले लगाकर देख जरा,,

कोई कलमा मोहब्बत का पढ़ के,,
फूंक दे,, कोई मंतर-तंतर,,
इक बार,, तुझसे मिलना,,
इक बार को तो,,जोर-आजमा,,

किसी फकीर से,, कहीं दरगाह से,,
दैर-ओ-हरम से,,धागा मंगवा ले,,
बांध दें मेरी कलाई पर,,
इक बार,,रुह औ जिस्म का राबता हो जाए,,
तुझे मोहब्बत का वास्ता,
कुछ तो कर,,,यारा
कुछ तो कर,, यारा

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