सबकुछ,
एक दिया तुम भी जला दो मेरी रूह की खातिर..
उसकी लौ से मुझे राहत मिल जाये..
*
जला दूँ पतंगे सा खुद को..
क़तरा-क़तरा तुम में मिल जाये..-
प्रेम बरसता है, तन मन से झूमता हूँ..
लब उसके नाराज़ है मुझसे..
पहले मैं माथे को जो चूमता हूँ..-
सबकुछ,
खत कई लिखे है, पढ़ने को तुम्हारे..
तुम्हे पढ़-पढ़ कर, खत ही तो लिखे है..-
सबकुछ,
खूब माथा चूमा है तुम्हारा,
दिल भी तो तीसरे नेत्र ने जीता है हमारा..-
Sabkuch,
I cannot love anyone else,
the part of mine made for love
is burnt for your name.-
सबकुछ,
कर भरोसा ज़िन्दगी का यहाँ,
पल भर में किस्से बदलते हैं..
भरोसा हैं कुछ इस क़दर तुम पर..
ज़िन्दगी को तेरे नाम से पुकारा करते हैं..-
सबकुछ,
दरमियां कुछ भी हो अपने, असर कुछ यूँ छोड़ जाऊंगा..
गिरेगा लफ्ज़ इश्क़ जब भी कानो में तेरे, आँखों में तेरी मैं चढ़ जाऊंगा..-
सबकुछ,
ऐ सुनती हो,
आज बीज का चाँद शरमा रहा है तुमसे,
ख्यालो में क्या तुम भी कुछ बुनती हो,
ऐ सुनती हो..-
सबकुछ,
काटती हो अपने ही लब अपने ही दांतों से..
हम हार ही जाते है, खुद के जज़्बातों से..
उस पे इतरा कर यूँ मुँह भी फुलाती हो..
ज़ाना क्या कहें, कैसे-कैसे सितम ढहाती हो..-