अगर चाय न होति तो शराबी होते हम!
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ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूं देखें ज़िंदगी को किसी और की नज़र से हम!!-
राह कहां से है ये राह कहां तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है!!-
तीन दिन से हो रही आतिशबाजी रुकने के बाद चारों ओर फैला हुआ गहरा सन्नाटा
सन्नाटा ऐसा जिसमे कमरे की दीवार घड़ी की सुइयों की टिक टिक और फ्रिज़ के कंप्रेसर के बंद और शुरू होने की आवाज़ें भी साफ साफ़ सुनाई देती है..
हल्के कोहरे में पेड़ो से टपकती हुयी पानी की बूंदो से उत्पन्न मन को सुकून देने वाला संगीत, जिसमे कोरस का काम करते हुए कुछ बरसाती कीड़े और झींगुर की आवाजें
इस सरसराती हुयी तेज़ ठंडी हवा के झोंको के बीच, एक हाथ में चाय का प्याला और दूसरे में बालकनी में बैठा अपनी उलझनों के बीच गहरे आसमान को ताकता हुआ मैं
सच है जिंदगी के कई सवालो के जवाब गहरे सन्नाटो में छिपे हुए होते हैं, जिनका जवाब एक न एक दिन सब को तलाशना ही पड़ता है-
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुखन-सनास नहीं,
वो एक शख्स जो शायर बना गया मुझको।-
I think about you constantly, whether it’s with my mind or my heart.
Backup!!-
जब कोई अपना जाता है
तो एक भावशून्यता जकड़ लेती है
न शब्द मिलते हैं
और न ही ये समझ आता है
कि आसपास क्या हो रहा है
बस एक झूठी सी आस लगी रहती है
कि..काश एक बार और आंखें खोल दें
काश एक बार और सांस ले लें
और ये आस श्मशान तक साथ ही जाती है
और जब अग्नि इस आस को तोड़ देती है
तो भारी मन से वहाँ से घर लौटते वक्त
बस एक और आस रह जाती है
कि काश ये कोई बुरा सपना हो
और जैसे ही मैं जागूँ
सब कुछ पहले जैसा ही हो
और ये खयाल कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं होने वाला
आंख से आंसू निकाल देता है
(अजी हाॅ)-
मौत से भी ज्यादा ख़तरनाक है !
मौत के साए में जीते जाने का डर--
"यह समय आँकड़ों में चल रहा है।
लेकिन हमें इंसान के रूप में दर्ज होना है।"
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