आशियानों से निकलकर, भूल जाएगी कभी तो
वक्त का ताबीज साहिल , है ख़ुशी या ना किसी को
ताल्लुकातों से परे है , देखा है यहां किसी को
मेरे घर का वो झरोखा जहां से दिखती चांदनी है।
जाने कब तक है मुकमल , जान फिर से बांधनी है।
बांट लेंगे हर गमों को, बांटना है हर ख़ुशी को।
मेरी सी छोटी कहानी , क्या सुनाऊं हर किसी को ।
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