ता उम्र चलने की बात की थी ,
एक बार पलटता तो शायद फिर रुख जाता था |
बस फासला तो केवल दो लफ़्ज़ों का था ,
एक बार पुकारता तो वो जाता था |
माना की कई सारी कमियां थी उसमें,
तेरे मिजाज़ के साचे मैं वो ढल भी सकता था |
बस एक बार सोचा होता तो,
तन आज़ाद का कुछ हल निकल भी सकता था |
खैर वक़्त जैसे आगे निकल गया ,
वो अपनी जिम्मेदारियों मैं कैद हो गया,
अगर उम्र भर का ख्याल होता तो,
शायद रास्ता बदल भी सकता था |-
कई साल पहले इस जहां मैं,
एक सच हुआ करता था, सच जो सब देख सके,सब सून सके,
कमजोर था ,प्यास लगी थी उसे,
फ़िर कुछ परिंदे आये,
उसे पानी खरीदकर दिया,
और अपने साथ लेके चले गए,
मैं उस सच की तलाश में हूँ |
-
कभी खुद के सपनों को मिटटी मैं मिलाके, उस मिट्टी से आये फुल तुम्हें देती है,
तुम उसके लिए एक चाँद हो ये बता कर,
वो तुम्हें सूरज की तरह रोशनी देती है...
हर एक पल वो जो गुजारे वो केवल तुम्हारे लिए जीती है,
जो अपने हिस्से का एक निवाला तुम्हें दे
वो है माँ,
खुद के आंसुओं के मोती बनकर, तुम्हें अपने आंचल पल रखती है,
खुद से ज्यादा वो तुम्हें प्यार करती है,
हर जो तूफ़ान आये, हर जो दरियाँ आये,
वो एक पहाड़ की तरह तुम्हें सहारा देती है,
कड़ी धूप में भी जिसका होना एक चाव लता है
वो है माँ,
बचपन मैं तुम्हारी जो पूरी दुनिया हो,
शायद बड़ेपन में तुम्हारी दुनिया एक हिस्सा हो जाती है,
पर केवल
जिसे देख कर अपनेपन का एहसास हो वो है माँ,
तुम्हारी हज़ारों गलतियाँ जो माफ़ करें,
तुम्हें सही और गलत का मतलब समझाएं,
तुम्हारी हर शिकयत जो पूरे मन से सुने,
पर तुम्हारे लिए कभी कोई एक गलती ना करे वो है माँ...
कुछ अल्फ़ाज़, कुछ तोहफ़े, या कुछ बातें करके
तुम उसके प्यार को कभी
चुका नहीं सकोगे,
हर पल ये सोचते रहोगे की,
इतना सहज और निस्वार्थी कोई कैसा हो,
जिसे केवल तुम्हारी ख़ुशी मैं ख़ुशी हूँ,
ऐसा एक इंसान होती है
मां-
शराब तो नहीं पिता हु मैं ,
पर एक गिलास खुद के सामने भी
रख लेता हु,
बहुत कुछ है जिसे घूंट घूंट
पीकर भूल जाना है |-
लोग आके कहते हैं,
अरे भाई ये तुम हररोज क्या लिखते हो..
थोड़ेसे सहमे, थोड़ेसे उलझे ,
अपने आप मैं ही रहते हो..
इस भागती हुई दुनिया मैं,
कहाँ मिलेगा ये सब पढ़ने वाला,
अगर कोई मिल भी जाये तो ,
वो अल्फ़ाज़ समझ लेगा जज़्बात कहा ?
जो बोल न पाओ,
वो लिख देते हो,
जो बोल सकते हो,
वो भी लिख देते हो..
ऐसा भी क्या लगाव है लिखने में,
की जो सुनने वाला भी नहीं,
उसके लिए भी लिख देते हो...
क्या दिल हल्का हो जाता है तुम्हारा,
ये सब बयान करके,??
या फिर खुद से भी ,
सच छुपाना सीख गए हो..
उम्मीद मत लगाना ऐ दोस्त किसी से,
मैंने तो सुना है,
मुशायरों में आने वाले भी,
तुम्हें नहीं,
ख़ुद के अंदर की आवाज़ सुनने आते हो..-
दौलत, शोहरत, इज्जत, मोहब्बत
ये सब तो है नायाब |
पर कुछ और है ,
जिसके लिए ये सांसें चलती है |
शायद जिंदगी गुजर जाए वो ढूंढते ढूंढते,
पर वो मिल जाए तो फिर लगे की,
कुछ और है...-
खोज
मैं उस इंसान की खोज मे हूँ,
जो मुझे बचपन मे मिला था,
पूरे मोहल्ले मे अलग लगा था |
जिसकी आँखों मे नमीं
और चेहरा किसी बोझ से थमा था |
उसकी आवाज कभी सुनी नहीं मैंने,
मोहल्ले के बेबुनियाद बातों मे,
उसका सुर कहीं लापता था|
दोस्त भी दिखाई ना देते उसके,
शायद उनकी जिंदगी की रफ़्तारमे वो कहीं पिछड़ा था|
रोता होगा वो रातों मे ,
या हसता भी होगा,
पर खामोश जुबाँ के पीछे,
वो सब बातें अपने मनमे दबा देता था|
कंधे उसके शायद झुक गए थे थोड़े,
पर हौसलों के नुस्खे लेके वो अपने रास्ते चलता था|
शायद मेरी खोज अब ख़त्म हो चुकी है,
जब मैं कुछ दिन पहले उसे आईने मे मिला था|-
खुदा है तो वो खुदगर्ज नही होगा ,
दवा है तो फिर दर्द नही होगा,
सब इत्तेफाक का खेल है दोस्त,
अगर सच में खुदा होता तो इस दुनिया जैसा
कोई स्वर्ग नही होता |-