Kshipra Gaur  
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Joined 6 June 2019


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Joined 6 June 2019
6 DEC 2021 AT 19:04

कुछ रिश्तों को झटक कर तोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती..
वो बस वक्त की धार से घिसते जाते हैं..
एक दिन अचानक आप गहरी नींद से जागते हैं..
और रिश्ते दम तोड़ चुके होते हैं!

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23 OCT 2021 AT 23:27

समय सुई की नोंक की तरह पैना होकर तुरपाई कर रहा है..
और अतीत उधड़ता ही जा रहा है..
कोई ऐसा रिश्ता ही नहीं है जो इस टूटे मन को पूरी तरह ढ़क सके..
हर रिश्ते में मन का कोई कोना छूट ही जाता है..
एक उम्र के बाद इंसान इतना तो समझ ही जाता है
कि मन को फिर से जोड़ने की सारी कोशिशें बेकार है..

हम छुपाना सीख जाते हैं..
ढकना सीख जाते हैं..
सारे रिश्ते कतरन लगने लगते हैं..
कतरनों में जीवन रह गया है
और ये कतरनें क्या काम की है..?
कभी कभी लगता है कि
कोई ख़ूबसूरत रिश्ता इन कतरनों को जोड़कर मन को ढ़क लेगा..
फिर लगता है कि.. शायद नहीं...
टूटते मन को किसी भी रिश्ते की कतरन ढक नहीं सकती..

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14 AUG 2021 AT 8:03

छूटते छूटते हाथ से कितना
कुछ छूट गया है..
और कितना कुछ रह गया है..
इसका सारा हिसाब किताब
रातें करती रहती है..

ये रातें कितनी भारी होती है ना..

इतनी भारी कि सुबह की उम्मीद में..
रात की थकन घुली रहती है..

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10 JUL 2021 AT 22:56

जिंदगी की ऊहापोह में हम कभी
जान ही नहीं पाते कि
जीवन से रिश्ते रिस रहे हैं..
या रिश्तों से जीवन..
(अनुशीर्षक में..)


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7 JUL 2021 AT 21:30

तलाश....

(अनुशीर्षक में..)

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6 JUL 2021 AT 9:57

तुमने मेरी जमीन के
एवज़ में देना चाहा मुझे
अपने आसमान का एक टुकड़ा..
वही टुकड़ा जिस पर मैं अपना
पूरा संसार बसा सकती थी..
और बसाना चाहती भी थी..
पर मुझसे नहीं छूट सकी मेरी जमीन..
और तुम छूट गए मुझसे..

और तब मुझे अहसास हुआ..
कि शजर के पास जमीन भले ही
सीमित हो..
लेकिन आसमान पूरा उसका है..

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16 JUN 2021 AT 9:28

कुछ तस्वीरें प्रेम हुआ करती है..
और कुछ तस्वीरें कविता..
अब ये देखने वाले पर निर्भर है कि..
वह प्रेम पर कविता लिखे..
या कविता में प्रेम लिखे..
या लिख दे महज तस्वीरों को
ज्यों का त्यों..

मुझे हर तस्वीर में तुम
नजर आते हो..
अगर कभी नजर नहीं आते..
तो भी मैं तुम्हें ढूंढ लेती हूँ..
ताकि रह जाये..
कविता में थोड़ा प्रेम..
और प्रेम में कोई
कविता...

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3 JUN 2021 AT 21:36

जिन रिश्तों को
हम आसूंओं
से सींचते है..
उन पर अक्सर
उदासी के
फूल उग आते हैं..

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2 JUN 2021 AT 18:06

अपेक्षा
और
उपेक्षा
की चक्की
में अक्सर
प्रेम पिस
जाता है..

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30 MAY 2021 AT 10:39

शायद एक दिन तुम्हारी
कविता का पन्ना उड़ कर
किसी नदी में मिल जाये..
(अनुशीर्षक में..)

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