मैं तुम्हारी वेदना समझती हूँ,,
मैं भी तुमसे उतना ही प्रेम करती हूँ जितना कि इस अस्तित्व में मेरे प्रेम का अस्तित्व बनाने के लिए काफी हैं। मगर ! तुम ही कहो,, इस भौतिक दुनिया में जहाँ आज भी लोग गुण और व्यक्तित्व से ज्यादा रूप रंग को महत्व देते हैं., जहाँ आज भी लड़कियों के चरित्र को कपड़ों से नापा जाता है., जहाँ आज सभी ओर अस्थिर रिश्तों की बाढ़ सी आई हुई है वहाँ ये कौन मानेगा की हमारा प्रेम देह से परे है,,.. कौन सुनेगा हमारी धड़कनें जो एक दूसरे के लिये धड़कती है, कौन मानेगा कि हम एक दूजे के लिये बने हैं¿? अगर तुम्हें पता है तो बता दो मुझे.... यह दुनिया क्या है जरा सिखा दो मुझे....🍃
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