क्यूं यूँ बेचैन से भटकते रहते ?
बस एक ही ओर यूँ तकते रहते ?
कभी धूप में कभी बारिश में
कभी सपने में कभी ख्वाहिश में
इन सबसे परे तुम देखोगे कभी हमें
हम बैठे हैं बस इसी गुंजाइश में
पता नहीं कब मिलोगे तुम हमें
रब से मांगा है तुम्हें फरमाइश में-
💖 sHinE LiKe SuNsHinE 💖
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तो क्या तुम सच में बदल गए हो ?
जो ख्वाब सजाए वह सब भूल गए हो ?
सपनों से भी सुंदर एक घर था हमने सोचा
और आंगन में दो दिलों से बना एक झोंका
चारों तरफ खुशियां लहरा रही थी
फूलों के संग कलियां मुस्कां रही थी
मोहब्बत में जरा भी कसर ना थी छोड़ी
दुनिया को अपनी खबर ना थी थोड़ी
क्या याद नहीं तुमको मेरा वह पत्र ?
या सांसों में महकता वह गुलमोहर सा इत्र ?
सच-सच बताओ क्या भूल गए सब ?
क्या दिल में नहीं है थोड़ी सी भी कसक ?
कम से कम तुम याद रखते वह वादा
भरोसा किया था जिस पर सबसे मैंने ज्यादा
तुम ही बतलाओ तुम्हें नाम मैं दूं क्या ?
रूठा एक आशिक या सनम बेवफा ?-
उन गलियोँ में अब मुझे जाना नहीं
वहीं सिलसीला फ़िर से दौराना नहीं
पता चल गया, ये दुनिया मेरी नहीं
अब इस दुनिया का भी मुझे होना नहीं
बात एकदम सही है, सब मोह माया हैं
आँखों को भी बोल दिया कि तुने आँसु बहाना नहीं
जो चले गये सो चले गये मुरशद
अब उनके लिए मुझे गिर्गिराना नहीं
शायद हर बार सबको माफ करना..गलती मेरी ही है
अब इस रित को मुझे चलाना नहीं
अब दिल कितनी भी नौटंकी करें
दिल की बातों में मुझे आना नहीं
यकिनन सब जानते हैं..रुलाना मुझको
पर अब किसी के वास्ते मुझे रोना नहीं
बेशक खो दिया सब ने इस कदर मुझको
अल्वीदा....अब प्राप्ती को भी वापस आना नहीं-
हर शब्द मेरे तुझे तेरे लगेंगे
शब्दों में छुपा आशय देख जरा
मिलेंगे जवाब बाहर ना कहीं
जवाब की आत्मा में उतर के देख जरा
जिंदगी की राहों में कठिनाइयां खड़ी होगी
तू राहों कठिनाइयों की चल के देख जरा
मेरी आत्मा कौन कहता है कि तू बुजदिल है ?
टूटे ख्वाब लेके फिर से हस कर देख जरा-
सब लोग पाने की बात करते और मैं खोना लिखती हूं
तुम्हारे साथ जो बीत गया, वह जमाना लिखती हूं-
सख्या नातं तुझं नी माझं
तुझ्या हृदयात मी अशी काही बसावं
आठवण न काढता ही माझी, तरिही तुला मी आठवावं....
नजरेत तुझ्या मी असं सामवावं
अश्रु बनुनी कधी मीच ओघळावं..
तु माझ्या प्रेमात असं काही पडावं
बघतांना आरशात तु चेहरा तुझा पण त्यात तुला मी दिसावं...
गर्दीतही तुला एकटेपणा ने छळावं
विरहाच्या आकंतात कधी तु माझ्या साठी रडावं...
कधी तरी तुही माझ्या साठी लिहावं
कधी तुही माझ्या प्रेमात कवी बनावं
आणि नेमके त्याच वेळेस शब्दही कमी पडावं...
तुझ्या आयुष्यातही फक्त मीच असावं
माझ्या शिवाय तुझे आयुष्य ही कोडं असावं....-
कैसा लगता है बता मुझे छ्लने से
मुझे जलाकर फिर खुद जलने से
मजा आता है और गुस्सा भी आता है
शर्त खत्म होते ही तेरे भाग जाने से
तुझे सबूत मिलेंगे मेरे होने के
मेरी गैरहाजरी में रोने के
तुझ पर यूँ बारिश बरसते
आज देखा मैंने पानी को पिघलते
कोई न था आज साथ भीड में
उस मोड़ से यूँ मूड़ने में
आँखो में ही अपने दर्द छुपा रहीं थी
आस्तिक बनके मस्तक झुका रही थी
नई-नई नजमे मुझमे उतरती है रोज
पुराना ही जीना जिती हूँ रोज-
मैं तुम्हारी वेदना समझती हूँ,,
मैं भी तुमसे उतना ही प्रेम करती हूँ जितना कि इस अस्तित्व में मेरे प्रेम का अस्तित्व बनाने के लिए काफी हैं। मगर ! तुम ही कहो,, इस भौतिक दुनिया में जहाँ आज भी लोग गुण और व्यक्तित्व से ज्यादा रूप रंग को महत्व देते हैं., जहाँ आज भी लड़कियों के चरित्र को कपड़ों से नापा जाता है., जहाँ आज सभी ओर अस्थिर रिश्तों की बाढ़ सी आई हुई है वहाँ ये कौन मानेगा की हमारा प्रेम देह से परे है,,.. कौन सुनेगा हमारी धड़कनें जो एक दूसरे के लिये धड़कती है, कौन मानेगा कि हम एक दूजे के लिये बने हैं¿? अगर तुम्हें पता है तो बता दो मुझे.... यह दुनिया क्या है जरा सिखा दो मुझे....🍃-
तेरी फ्यूचर में मेरा नाम नहीं तो क्या.,
मेरी आँखोमे तेरा चेहरा हमेशा बरखरार रहेगा ॥-