बस मोहब्बत का ज़िक्र ही आया था,
हमने ख़ुद को महफ़िल से बेदखल कर लिया।।
कितने चेहरे बेनकाब करता मैं,
मैं उठा चला बस ख़ुद को असल कर लिया।।-
तेरी इस बेरूखी से मेरी शक्खिसयत निखरती ही... read more
ना दोष था उनका ना ही वो गुनाहगार थे।
बिताने को ख़ुशी के पल जहाज़ पर सवार थे।।
हंसते खेलते अपनों के संग खिलखिला रहे थे।
हर किसी के लिए यात्रा के पल यादगार थे।।
कुछ अपनों से मिलने कुछ मिलकर जा रहे थे।
हिल मिल कर अपनों के संग ये पल बिता रहे थे।।
अब वक़्त वापसी का था तो हर कोई व्यस्त था।
कल लौट जाऊंगा मैं नम आंखों से बता रहे थे।।
चल पड़ा मुसाफिरों का कारवां मंजिल की ओर।
एक बार फिर अपनों के मिलने से मुस्कुरा रहे थे।।
चंद पलों में सबकी खुशियों को नज़र लग गई।
देख एक अनहोनी का अंदेशा सब घबरा रहे थे।।
बस जिंदगी के आख़िरी सफ़र पर सब निकल गए।
पलक झपकते वो सारे इंसान शोलों में बदल गए।।
याद करके उन परिवारों को आँखें छलक जाती हैं।
आज देख ये मंजर भयानक पत्थर दिल भी पिघल गए।।-
काश बाहों के सहारे वक़्त पर मिल जाते।
न जाने कितने इंसा बर्बाद होने से बच जाते।।-
अब तो मोहब्बत में ख़स्तगी की कगार पर हूँ।
यकीं करो ना करो तुम मैं तेरे ऐतबार पर हूँ।।
जितनी करोगी मोहब्बत बदले में पाओगे उतनी।
बहुत हुआ घाटा मेरा मैं अब बस व्यापार पर हूँ।।-
मत घबराना इन अंधेरों से एक दीया नज़र मैं आऊंगा।
बस लेना मेरा नाम जुबां पे मैं तेरी आहट बन जाऊंगा।।-
भुला कर मुझे अब कौन सा नया अफ़साना लिखोगी।।
ये तो बताओ किसे अपना,और मुझे दीवाना कहोगी।।
माना हक़ीक़त से वाक़िफ केवल तू और मैं ही रहेंगे,अपनी अपनी।
शुरू किसके साथ नया सफ़र और मुझे बीता ज़माना कहोगी।।
झुठला दोगी महफ़िल में मेरी बातों को,जब नाम तेरा जुड़ेगा मुझसे।
हासिल करोगी नया दौर नई मंज़िल और मुझे पुराना अफसाना कहोगी।।-
सुनो तुम मेरे लिए हमेशा मेरी जिम्मेदारी ही रही थी।
मोहब्बत में हासिल कर सकूं तुझे मैं ये दावा कभी नही करता।।-
मुझे मेरी मोहब्बत पर ज़रा भी ऐतबार नही रहता।
तू चाहती रहा कर बस भरोसा क़ायम रहेगा मेरा।।-
जाते जाते भी वो मेरी मोहब्बत का हक़ अदा करके गई।
ख्याल रखना ख़ुद का कहकर फ़िर से वफ़ा करके गई।।
और मेरी ख़ुशी तेरे हंसते लबों को देख कर बनी रहेगी।
देके लम्बी उम्र की दुआ वो फ़िर से नई खता करके गई।।-
वो बोले मोहब्बत का क्या है किसी और से हो ही जाएगी।
सच कहते थे वो अब मौत को लोग मेरी महबूबा कहने लगे है।।-