कृष्णा   ("✍️कृष्णा की कलम")
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Joined 9 March 2019


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2 MAY AT 7:05

और कितनी उम्मीदें रक्खू तुझसे ए जिंदगी।
तूने हर बार ऐन वक्त पर ही धोखा किया है।।

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1 MAY AT 11:26

मेरे हिस्से के दर्द ओ ग़म वो ख़ुदा से मांगती है।
एक लड़की है जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है।।
उससे मालूम है इस सफ़र की कोई मंजिल नहीं।
रहता है दिलों में शोर,और हमारी आंखों में शांति है।।

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1 MAY AT 11:09

मुझे था यकीं वो बन के खंजर मुझे क़त्ल जरूर करेगा।
मैंने उसे मोहब्बत उसकी औकात से ज्यादा की थी।।

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30 APR AT 19:35

सनम के सितम भी बड़े हसीन है।
ज़ालिम भी वो है, वो ही नाज़नीन है।।

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27 APR AT 0:24

शौक तो पूरे होते थे पापा तुम्हारी ही कमाई पर।
मेरे कमाए कागज़ के टुकड़े जिम्मेदारी ही खा गई।।

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27 APR AT 0:21

ना था मज़हब कोई उनका ना कोई ईमान था।
ना था वो हिन्दू और ना ही वो मुसलमान था।।
धर्म इंसानियत का वो भुला कर आया था यहां।
बना बैठा था बस वहशी,वो ना ही कोई इंसान था।।

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24 APR AT 23:50

मैंने मोहब्बत तुमसे कि थी,अब और किसी से होगी क्या।
ये जान तुम्हें ही सौंपी थी,अब और भला तुम लोगी क्या।।
मेरे दिन गुजरते थे यादों में,बस रातें करवट में कटती थी।
तेरा वक़्त मिला था बदले में,अब वक़्त किसी को दोगी क्या।।

बहुत हुआ ख़्वाबों में मिलना,अब कुछ हक़ीक़त करना है।
वो चुपके छुपके बागों में आना, वो वक़्त दुबारा दोगी क्या।।
और आंसू मेरे गिरे तभी,जब तेरे कांधे की ओट लगाई थी।
गला रुंधा है फिर आज मेरा,वो कांधे का सहारा दोगी क्या।।

हर दर्द मेरा खो जाता था,जब तेरी बाहों में होता था।
खो न जाऊं भीड़ में फ़िर से,वो पल्लू का किनारा दोगी क्या।।
और भला है अब कौन मेरा,जो मुझको यूं समझाएगा।
एक बार और है उठना मुझको,बोलो फ़िर से सहारा दोगी क्या।।

क्या है ये सब दुनियादारी,अब मुझको कुछ परवाह नही।
साथ चलें क्या फ़िर से दोनों,एक बार इशारा दोगी क्या।।
तू चले लहर सी सागर की,मैं बस खारे पानी जैसा हूँ।
हूं डूबा बहुत मैं जंजालों में, मुझे फ़िर से किनारा दोगी क्या।।

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16 APR AT 1:36

की दूर हो जाने से भी कभी ताल्लुक कम नहीं होता
एक को हो तकलीफ़ तो दूजे को क्या ग़म नहीं होता।।
मेरे आंसुओं को तू आंचल में समेट लेती थी याद है।
सच बता आज मेरे रोने से क्या तेरा आंचल नम नही होता।।

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14 APR AT 0:00

वो दूर हो सकता है मुझसे मग़र ग़ैर नही।।
ये ताल्लुक़ ज़रा सी बात पर तोड़े नही जाते।।

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13 APR AT 23:46

मुझे निभाना था, उन्हें भुलाना था।
मुझे मनाना था, उन्हें दूर जाना था।।
क्या इतने फासले दरमियां थे हमारे।
की मुझे सिर्फ़ वो,उन्हें कोई और पाना था।।

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