वर्ष 2024 अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है
ऐसे में
मैंने महसूस किया कि
मुझे उन सभी को तहे दिल से शुक्रिया अदा करना है
जिन्होंने इस साल मुझे मुस्कराने की वजह दी
आप उनमें से एक है...आपका धन्यवाद।
और एक चीज़ शायद मैं भूलते जा रहा था
याद आया
यदि जाने अनजाने में मेरे वाणी,कर्म व व्यवहार से
आपके कोमल हृदय को ठेस पहुंची हो तो
मैं आपसे क्षमापार्थी हूँ।
आपकी आंखों में सजे हैं जो भी सपने
दिल में छुपी हैं जो भी अभिलाषाएं
यह नया साल उन्हें सच कर जाए
आपके लिए हमारी यही है दुआएं
नूतन वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं!-
Life can get only as good as you think🤔
हम साल के अंतिम महीने में हैं।
मैंने महसूस किया कि
मुझे उन सभी लोगों का शुक्रिया करना है
जिन्होंने इस साल मुझे
मुस्कुराने की वजह दी है।
आप उनमे से एक हैं… आपका धन्यवाद!
और हां एक जरूरी चीज जो शायद
मैं भूलते जा रहा था, याद आया...
मैंने आपका जाने अनजाने में
कभी भी आपके नाजुक दिल को तकलीफ़
पहुंचाया हो तो मैं आपसे क्षमा प्राथी हूं।
अलविदा नूतन वर्ष 2025
2024 की हार्दिक शुभकामनाएं
-
इस कहानी में अब कौन
किरदार आयेगा
कितना देर ठहरेगा
कब जायेगा
यह वह खुद तय करता है
जिसकी यह कहानी होती है...
-
"खामोशी" बड़ी बेरहम चीज़ है...
.
.
.
.
हंसते - मुस्कुराते शख़्स को
"जिंदा खा" जाती है...!!!-
जिस दिन बच्चे की जेब से फ़ुज़ूल चीज़ों के बजाये पैसे बरामद हों तो समझ लेना चाहिए कि उसे बेफ़िक्री की नींद कभी नसीब नहीं होगी।
-
अपनी जगह अपना शहर
पर कुछ तो है उस गांव में,
जहां अपना घर, घर में अपना कमरा,
जिसे छोड़कर निकले थे कभी
लौटने की तसल्ली ले-देकर,
सब डायरी के पन्नों में लिखकर
भुला दिए हैं वो हसीन सपनों की यादें
जिन्हे जीने का मन फिर से करता
पर अफसोस इस बात कि
चाहत तो बहुत होती, पर कास
कुछ मजबूरियां न होती...
खैर...
सपनों का तो नही पता
पर सच कहे तो, गांव लौटने की
खुशी की बात हीं कुछ और है..
और वो रास्ते वो मंजर
और नजदीक होती दूरियां
एक पल के लिए लगता है
कि रास्तों में खड़ा हर शक्स,
और आंचल पसारे प्रकृति
मानो,सब हमारी हीं स्वागत में बैठे है।-
पुरुष ने अपनी योग्यता से सारी सृष्टि को बना के
निर्माण करके उसपे विजय पायी
और स्त्री ने तो सिर्फ एक करुणा बनाकर
पुरुष को हीं जीत लिया।
-
पृथ्वी है एक परिवार हमारा
-------------------------
गुरु ग्रंथ और बाइबिल में, गीता और कुरान में
है मानवता एक हीं धर्म, लिखा है सभी पुराणों में
बात सुनो एक हिंदुस्तानी की, सारा जहां से कहते हम
बात हम मज़हब की नहीं, बात इंसानियत की करते हम।
गांधी बिस्मिल भगत मंगल, सबने है बात सिखाई
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में है भाई-भाई
ना कोई काम,ना कोई ज्यादा, सर्वधर्म है एकसमान
पृथ्वी है एक परिवार हमारा, वसुधैव कुटुंबकम् को लो दिल से मान।
इधर से आये,उधर से आये, आकर यहीं रहने आयें
सबको प्यार दिया हमने और सबको अपना मान लिया हमने
काले-गोरे अमीर-गरीब, सबको है जीने का अधिकार
लोगों में एकता,प्रेम और भाईचारा, है इस धरती को स्वीकार।
मिलकर यहां हम साथ चले, न कभी मंजिल से भटके हम
वसुधैव कुटुंबकम्, ऐसी सोच हमारी
अपने पराये में भेदभाव नहीं करते हम
पृथ्वी है एक परिवार हमारा, मिलकर यहां साथ रहते हम।-