Kritikaa Dhanraj   (©krtikadreamer)
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Joined 7 May 2019


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12 DEC 2021 AT 17:50

रोती आंखों से अधिक खतरनाक होती है
सुनी आंखें
जो की ना खुशी में चमकती है
और ना ही दर्द में आंसुओं से भरती है
उनमें इतना सूनापन होता है कि
समंदर भी भर जाए उनमें
तो भी एक बूंद बाहर आंखों से छलके ना
✍️ कृतिका धनराज 💫

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6 DEC 2021 AT 22:51

जिम्मेदारियों का बोझ लिए कंधों पर
मुस्कुराते हुए सुकून से भरा घर छोड़ कर
संघर्षों से भरा शहर चुन लेते है
लड़के अपनी खुशियों को दिल से बाहर फेंक
घर की खुशियों को जेब में भर लेते है
✍️ कृतिका धनराज 💫

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5 DEC 2021 AT 20:13

मैं स्वयं को निहारती रहती हूं
घंटों तक
ढूंढती हूं स्वयं में वो कमियां
जो मेरे अलावा सबको मुझमें
दिखाई देती है
मैं आलसी हूं ऐसा लोग कहते हैं
पर मेरा मानना है मैं आलसी नहीं हूं
हां, बस मैं कोई भी काम किसी और के
हिसाब से नहीं करती
जब मेरा दिल करता है तो करती हूं
मैं मुंहफट भी हूं ऐसा लोग कहते हैं
पर मेरा मानना है कि मुझे दोगलापन नहीं आता
तो दिल की बातें मुंह पर बोल देती हूं
बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो लोग
कहते हैं
पर लोग जो कहते हैं वो सही कहते हैं
ऐसा तो मैने कही नहीं पढ़ा

मैंने एक तस्वीर ली आज अपनी
वो भी आधी चेहरे वाली
फोन का कवर "भयंकर आलसी" वो भी
पांडा के साथ
तस्वीर साफ नहीं आई आईने पर धूल पड़ी थी
मैंने साफ़ नहीं की
मुझे यह तस्वीर अच्छी लगी पर
मन में फ़िर एक सवाल आया
लोग मुझे आलसी गलत तो नहीं कहते
फ़िर लगा कभी कभी एक आध दशक बाद
लोग कुछ कहते है जो शायद से सही ही कहते है

✍️ कृतिका धनराज 💫

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4 DEC 2021 AT 19:36

मैं मूर्त बन जाऊं
जो तुम मुझे रखना चाहो सजा कर तो
मैं पलके भी ना झपकाऊं
जो तुम मेरे नैनों में झाको तो
मैं अपने भावनाओं को पाषाण बना दूं
मेरी इच्छाओं को जला कर भस्म कर दूं
तुम मुझे ठुकरा कर
जो किसी पराए को अपनाओ तो
✍️ कृतिका धनराज 💫

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30 NOV 2021 AT 17:08

प्रेम में धोखा खाया हुआ इंसान
स्वयं को वही रट्टू तोता समझता है
जिसने सीखा था, बहेलिया आएगा
दाना डालेगा,जाल बिछाएगा और दाना नही खाना है
यही रटते हुए वो दाना खाने उस जाल पर बैठ जाता है
✍️ कृतिका धनराज 💫

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25 JUN 2021 AT 18:33

शाम तू ही बता
क्या उसे हर रोज़ याद करना सही है
जिसके यादों में हम
एक पल को भी नहीं हैं।

✍ कृतिका धनराज 💫

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14 JUN 2021 AT 23:20


वो हिस्सा हैं मेरे जीवन का।
( अनुशीर्षक पढ़े)
✍ कृतिका धनराज 💫


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16 MAR 2021 AT 22:28

मैंने तुम्हें रोकने की हर मुमकिन
कोशिश की
मगर
तुम्हें जाने की बहुत जल्दी थी

जब अंत में जाना ही चुना तुमने
तो तुम्हारा मुड़ कर देखना मुझे,
हरगिज गलत था

क्यूंकि जाते वक़्त किसी का
मुड़ कर देखना
एक उम्मीद पैदा करता है और
एक असमंजस पैदा करता है

उम्मीद की वो लौट कर आयेगा
असमंजस की वो
शायद जाना नहीं
चाहता था।

✍ कृतिका धनराज

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12 MAR 2021 AT 17:33

"छाया का दृश्य के दूर हो जाने पर
उसे भेजा गया एक संदेश"
दृश्य,
तुमसे दूर होकर
तुम्हारे पास होने का
आभास होता है अब

एक उम्र जिन एहसासों को
जीते हुए गुज़ारी है मैंने
वो एहसास कल्पना से
हक़ीक़त बन गए हैं जैसे,
और हक़ीक़त भी पूरी तरह नहीं
आभासी हक़ीक़त है यह
या फ़िर कहूँ तो
काल्पनिक हक़ीक़त है!

मेरी बातें बहुत अटपटी लग
रही हैं तुम्हे
समझ सकती हूँ मैं।

एक काल्पनिक हक़ीक़त यह भी
है कि मुझे यह लगता है
तुम भी मुझे समझ सकते हो।

तुम्हारी छाया 💫

✍ कृतिका धनराज

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25 FEB 2021 AT 20:13

तुम्हारा मेरा रिश्ता
बिल्कुल खरा है, खारा है
और पार्दर्शि है
आँसू की तरह।
✍ कृतिका धनराज

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